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चारित्राचार
अवतरणिका :
ज्ञानाचार तथा दर्शनाचार के अतिचारों का वर्णन करके अब चारित्राचार विषयक अतिचार बताते हैं - गाथा :
छक्काय-समारंभे पयणे अ पयावणे अ जे दोसा।
अत्तट्ठा य परट्ठा उभयट्ठा चेव तं निंदे ।।७।। अन्वय सहित संस्कृत छाया :
आत्मार्थं परार्थम् च उभयार्थं च पचने पाचने च । षट्कायसमारम्भे ये दोषा: तान् निन्दामि ।।७।। गाथार्थ :
अपने लिए, दूसरे के लिए या दोनों के लिए आहार पकाने एवं पकवाने में छःकाय जीवों की हिंसा जिसमें है वैसे आरंभ-समारंभ करने में जो दोष लगे हों, उनकी मैं निन्दा करता हूँ।