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चतुर्थ व्रत
अवतरणिका :
अब चौथे व्रत का स्वरूप तथा अतिचार बताते हैं ।
गाथा :
चउत्थे अणुव्वयम्मी, निचं परदार - गमण - विरईओ । आयरिअमप्पसत्थे, इत्थ पमायप्पसंगेणं ।। १५ ।।
अन्वय सहित संस्कृत छाया :
प्रमादप्रसङ्गेन अप्रशस्ते अत्र चतुर्थे - अणुव्रते ।
नित्यं परदार-गमन - विरतित: अतिचरितम् ।। १५ ।।
गाथार्थ :
प्रमाद के कारण अप्रशस्त भाव का जब प्रवर्तन होता हो तब इस चतुर्थ अणुव्रत
में परस्त्रीगमन से सदा के लिए की गई विरति ( का उल्लंघन करने) से दिन भर में
जो कोई विपरीत आचरण हुआ हो ( उन सबका मैं प्रतिक्रमण करता हूँ)।