Book Title: Sutra Samvedana Part 04
Author(s): Prashamitashreeji
Publisher: Sanmarg Prakashan

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Page 296
________________ धर्माराधना से उपसंहार गाथा- ४३ विराधना का अर्थ है व्रत का खंडन, व्रत को स्वीकार करने के बाद उसमें लगे छोटे-बड़े दोष । इन दोषों से अटके बिना सुन्दर आराधना संभव नहीं होती, इसलिए श्रावक पुनः संकल्प करता है कि 'मैं विराधना से विरमित हुआ हूँ और आराधना करने के लिए, मन, वचन, काया द्वारा पाप वृत्ति से वापस लौटता हुआ मैं चौबीस जिनों को वंदन करता हूँ' । २७३ इस प्रकार से इस गाथा में श्रावक ने बताया कि सर्व प्रकार के पापों का प्रतिक्रमण करने के बाद, अब मेरी भावना आराधना करने की है। आराधना भी मैं जैसे-तैसे करना नहीं चाहता, परंतु प्रमादादि दोषों को टालकर, तीव्र संवेग तथा निर्वेद पूर्वक करना चाहता हूँ क्योंकि ऐसी आराधना से ही कर्मनाश और मोक्ष प्राप्ति हो सकती है। ऐसी आराधना करने की मेरी तीव्र भावना है, फिर भी मैं समझता हूँ कि जीवन में विराधनाएँ निरंतर रहें तो आराधना कभी भी सम्यग् नहीं हो पाएगी। इस कारण से मैं विराधना से विराम पाता हूँ। भविष्य में कोई भी विराधना न हो जाए अर्थात् मेरे जीवन में दोष का दाग न लग जाए इसके लिए सदा सजग रहता हूँ। मैं समझता हूँ कि आराधना का मार्ग कंटकाकीर्ण है। इस मार्ग पर चलने से जघन्य, मध्यम एवं उत्कृष्ट अनेक प्रकार के विघ्नों की संभावना है। इन विघ्नों के समूह का विदारण करने और विशुद्ध आराधना के मार्ग में आगे बढ़ने हेतु मनवचन काया से पाप का प्रतिक्रमण करके मैं चौबीस जिन की वंदना रूप मंगलाचरण करता हूँ। मुझे विश्वास है कि मेरी ये मंगल क्रिया आराधना में आगे बढ़ने में मुझे सहायता करेगी। इस गाथा में 'अब्भुङिओ मि आराहणाए' पद द्वारा वर्तमान में निरतिचार व्रत पालन के लिए मैं तत्पर बना हूँ। 'विरओ मि विराहणाए' पद द्वारा भविष्य में पाप न हो इसलिए जागृत हुआ हूँ, तथा 'तिविहेण पडिक्कतों' पद द्वारा भूतकाल में हुए पापों से वापस लौटता हूँ। ऐसा बताकर तीनों काल संबंधी व्रतपालन के प्रति सावधानी व्यक्त करने में आई है। - इस गाथा का उच्चारण करते हुए श्रावक सोचता है कि 'जिनके प्रभाव से मैं धर्म की आराधना में जुड़ा तथा किए हुए दुष्कर्मों का

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