Book Title: Sutra Samvedana Part 04
Author(s): Prashamitashreeji
Publisher: Sanmarg Prakashan

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Page 318
________________ धर्माराधना से उपसंहार गाथा-५० २९५ गुरु भगवंत के पास विशेष प्रकार से उन दोषों की गर्दा करके अर्थात् 'हे भगवंत! मैंने ये बहुत गलत किया है। आप मुझको उसका प्रायश्चित्त दीजिए एवं विशुद्धि का मार्ग दिखाइए।' गुरू भगवंत के समक्ष हृदय पूर्वक इस प्रकार के वचन का उच्चारण करके, दुगंछिअं सम्मं - सम्यग् प्रकार से जुगुप्सा करके, एक बार हुई भूल बारबार न हो इसलिए उन दोषों के प्रति अत्यंत घृणा, द्वेष एवं तिरस्कार प्रकट करना जुगुप्सा है। सूत्रानुसार सही तरीके से जुगुप्सा करके, तिविहेण पडिक्कतो वंदामि जिणे चउव्वीसं - मन, वचन, काया से प्रतिक्रमण करता हुआ मैं चौबीसों जिनेश्वरों को वंदन करता हूँ। सूत्र में पूर्व दी हुई जानकारी के अनुसार आलोचना, निन्दा एवं गर्दा करके विभाव दशा में से पुनः स्वभाव में आने के लिए, पाप से वापस लौटने के लिए, मन, वचन एवं काया से प्रतिक्रमण करता हुआ, मैं संपूर्ण निष्पाप जीवन जीनेवाले तीर्थंकरों को स्मृति में लाकर उनको वंदन करता हूँ और ऐसी अभिलाषा व्यक्त करता हूँ कि मुझमें भी वैसे गुण प्रकट हों। इन पदों द्वारा ग्रंथकार ने यहाँ अंतिम मंगल किया है। प्रारंभ में मंगल विघ्नों के निवारण द्वारा शास्त्र की निर्विघ्न समाप्ति के लिए होता है। मध्य में मंगल शास्त्र के पदार्थों को स्थिर करने के लिए होता है एवं अंतिम मंगल शुभ कार्य से प्रकट हुए शुभ भावों को टिकाने के लिए एवं शिष्य-प्रशिष्यादि परंपरा अथवा श्रावक की अपेक्षा पुत्र-पौत्रादि की परंपरा तक शास्त्र का अर्थ विच्छेद न हो इसलिए किया जाता है। यहाँ अंतिम मंगल के द्वारा सूत्रकार आशा व्यक्त करते हैं कि इस सूत्र द्वारा जो 2. मङ्गलस्य त्रिविधस्यापि फलमिदम् - 'तं मंगलमाईए मज्झे पजंतए य सत्थस्स। पढमं सत्थस्सविग्धपारगमणाए निद्दिट्ट।।१।। तस्सेवाविग्घत्थं (तस्सेव उ थिज्जत्थं) मज्झिमयं अंतिमं च तस्सेव अव्वोत्तिनिमित्तं सिस्सपसिस्साइवंसस्स ।।२।। - विशेषावश्यक गा. १३-१४ शास्त्र के प्रारंभ में, मध्य में एवं अंत में तीन प्रकार के मंगल का फल इस प्रकार है : प्रथम मंगल शास्त्र की निर्विघ्न समाप्ति के लिए बताया गया है। मध्य मंगल शास्त्रों के पदार्थों को स्थिर करने के लिए किया जाता है एवं अंतिम मंगल शास्त्रोक्त भावों की शिष्य-प्रशिष्य परिवार में अविच्छिन्न परंपरा चले, ऐसे शुभ निमित्त से होता है।

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