Book Title: Sutra Samvedana Part 04
Author(s): Prashamitashreeji
Publisher: Sanmarg Prakashan

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Page 307
________________ वंदित्तु सूत्र वाली मानी है, परंतु प्रभु ! अब अज्ञान का आवरण हटा है एवं मेरे मन-मंदिर में विवेक का एक मंद सा दीपक प्रकट हुआ है। इसलिए अब सांसारिक सामग्रियाँ मंगलमय हैं ऐसी गलतफहमी को छोड़ महासुख के साधनभूत अरिहंत भगवंत, मोक्ष के महासुख में निमग्न सिद्धभगवंत, धर्ममार्ग में सुस्थित साधुभगवंत एवं अरिहंत परमात्मा द्वारा प्ररूपित श्रुतधर्म तथा चारित्रधर्म को मैं मंगलरूप मानता हूँ। इसी से मेरा कल्याण है, ऐसा मानता हूँ ।' २८४ चिरकाल तक अनंत आनंद देनेवाले, अनंत सुख के स्थानभूत अरिहंत, सिद्ध, साधु एवं धर्म ही दुनिया में सर्वश्रेष्ठ हैं, उत्तमोत्तम हैं। इस जगत में इनसे उत्तम दूसरी कोई चीज़ नहीं और मुझे संसार के भय से मुक्त करानेवाले, शरण स्वीकारने योग्य भी ये ही हैं, क्योंकि सच्चा शरण' उसे ही कहते हैं जिसके शरण में जाने से निर्भय बनते हैं, सुरक्षा का अनुभव होता है। अरिहंतादि उत्तम पुरुषों के स्मरण, चिंतन या ध्यान से क्लिष्ट कर्मों का विनाश होता है, रागादि दोष अल्प अल्पतर होते हुए नाश होते हैं एवं साथ ही साथ निर्जरा में सहायक बने ऐसे पुण्यानुबंधी पुण्य कर्म का बंध होता है। इसलिए अरिहंतादि का ध्यान करने वाले की अंतरंग एवं बाह्य आपत्तियाँ टलती हैं, मन में निर्भयता का अनुभव होता है, शांति एवं सुरक्षा की प्राप्ति होती है। इसी कारण से इन चार के अतिरिक्त इस जगत में दूसरे किसी का शरण स्वीकारने योग्य नहीं । जिज्ञासा : गाथा में क्यों सुअं एवं धम्मो इन दो पदों का प्रयोग किया है ? इनके बदले मात्र धम्मो पद का प्रयोग किया होता तो उससे दोनों प्रकार के धर्म का ग्रहण हो सकता था ? 1. न ह्यतश्चतुष्टयादन्यच्छरण्यमस्ति, गुणाधिकस्य शरण्यत्वात्, गुणाधिकत्वेनैव ततो रक्षोपपत्तेः, रक्षा चेह तत्तत्स्वभावतया एवाभिध्यानतः क्लिष्टकर्मविगमेन शान्तिरिति । - योगशतक गाथा ५० टीका जिस कारण से दुनिया में भय से पीड़ित व्यक्ति के लिए गुणाधिक का शरण ही योग्य है, उसी कारण से अरिहंत, सिद्ध, साधु एवं धर्म के सिवाय अन्य किसी का शरण लेने योग्य नहीं, इसका कारण ये है कि जो आत्मा गुण से अधिक हो उसका ही शरण योग्य है। गुणवान आत्माओं के उन स्वरूप का ध्यान करने से क्लिष्ट कर्मों का नाश होता है एवं क्लिष्ट कर्मों नाश से शांति की प्राप्ति होती है, जो वास्तव में रक्षा है। -

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