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चतुर्थ व्रत गाथा-१६
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• परस्त्री के साथ प्रयोजन बिना कभी बात न करना, बात करनी पड़े तो भी
आँख से आँख मिलाकर बात न करना। जिस प्रकार सूर्य के सामने दृष्टि पड़ते ही आँख बंद करनी पड़ती है, उसी प्रकार पर स्त्री पर दृष्टि पड़े तो तुरंत
ही नज़र हटा लेनी चाहिए। • परस्त्री जहाँ बैठी हो उस आसन या शय्या पर पुरुष को दो घड़ी तक और
जहाँ पर पुरुष बैठा हो उस आसन या शय्या पर स्त्रियों को तीन प्रहर तक नहीं बैठना चाहिए । इतने समय के अंदर बैठने से भी काम वासना जागृत हो सकती है। परस्त्री अथवा परपुरुष के अंग-उपांग भी कभी राग दृष्टि से नहीं देखने चाहिए। पर स्त्री-पुरुष का युगल जहाँ क्रीड़ा करता हो उस दीवार के पास भी नहीं रहना चाहिए। इस बात से यह तो समझा ही जा सकता है कि ऐसी फिल्में
अथवा टी.वी. के पर्दे पर नाचती, कूदती या अन्य चेष्टा करती हुई पर स्त्रियों का रूप-रंग या अंगोपांग चतुर्थ व्रतधारी श्रावक तो न ही देखे। • भूतकाल में अनुभव की हुई कामवृत्तियों के प्रसंगों या विकृत विचारों का
कभी स्मरण न करे। • कामवृत्ति को उत्तेजित करे ऐसे मादक आहार लेना ही नहीं चाहिए अर्थात्
जिसमें घी, दूध वगैरह विगईओं का प्रमाण अधिक हो, वैसी मिठाईयाँ तथा वनस्पतियों का त्याग करना चाहिए। जब तक सर्वथा त्याग न हो, तब तक उनका उपयोग अति मर्यादित करना चाहिए। • रूक्ष आहार भी मर्यादित प्रमाण में ही लेना चाहिए। • स्व-पर के काम की उत्तेजना हो ऐसी शरीर की शोभा, तेलमर्दन, विलेपन
या स्नानादि नहीं करना चाहिए । व्रतधारी श्रावक को इन नौ नियमों का अवश्य पालन करना चाहिए। इन नौ में से किसी एक नियम का खंडन भी व्रत को दूषित करता है। इसलिए उसे अतिचार कहते हैं। आचार की ऐसी जागृति रखकर अतिचारों का वास्तविक प्रतिक्रमण करना हैं।