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पंचम व्रत गाथा-१८
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संरक्षण में विविध प्रकार के शारीरिक, मानसिक, व्यवहारिक कष्ट उठाने पड़ते हैं; मूढ़ता के कारण ये कष्ट, कष्ट नहीं लगते, इसलिए परिग्रह मित्र नहीं शत्रु हैं।
• परिग्रह के कारण दुःख का जन्म होता है एवं सुख का नाश होता है क्योंकि पैसे से मन की शांति और तन की स्वस्थता चली जाती है एवं अनेक प्रकार के रोग आते हैं।
• परिग्रह पापों का घर है क्योंकि वह बाकी के सत्रह पापों को खींच लाता है ।
• प्रज्ञावान लोगों को भी परिग्रह हैरान-परेशान कर डालता है, तो सामान्य लोगों का तो क्या कहना ? परिग्रह तो भूत-प्रेत की तरह क्लेश एवं विनाश का कारण बनता है।
• परिग्रह न मिलने से कांक्षा-पाने की इच्छा, नष्ट होने पर शोक, मिलने के बाद रक्षण, उपभोग में अतृप्ति - जैसे दुर्भाव मन में बने रहते हैं, इसलिए परिग्रह के आगे पीछे एवं परिग्रह भुगतने में भी जीव दुःख रूप बंधनों से नहीं छूट सकता। ऐसे विचारों से श्रावक को अपनी त्याग भावना को ज्वलंत बनाना चाहिए ।
4 परिग्रहेष्वप्राप्तनष्टेषु काङ्क्षा - शोकौ, प्राप्तेषु च रक्षणम्, उपभोगे चातृप्तिः, इत्येवं परिग्रहे सति दुःखात्मकाद्वन्धनान्न मुच्यत इति।
___ - सूयगडांग सूत्र की टीका