Book Title: Sutra Samvedana Part 04
Author(s): Prashamitashreeji
Publisher: Sanmarg Prakashan

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Page 280
________________ सम्यग्दृष्टि का प्रतिक्रमण गाथा-३९ २५७ २.शीलवान: शील के छ: गुण जिसमें होते हैं वह शीलवान होता है। १.आयतन सेवी - ऐसे स्थान में ही रहता हो जहाँ अधिकतर बहुश्रुत, सदाचारी, चारित्राचार संपन्न साधर्मिक धर्माराधना करते हों। २. परगृह प्रवेश त्याग - विशेष कारण बिना दूसरों के घर न जाता हो। ३. उद्भट वेष त्याग - चमक-दमक वाले और असभ्य वेष का त्याग करनेवाला हो। ४. विकार वचन त्याग - विकार पैदा हो ऐसे वचन न बोलता हो। ५. बाल-क्रीडा त्याग - जुआ खेलना आदि बाल क्रिड़ाओं का त्याग करता हो । ६. मधुर नीति से स्वकार्य साधन - कठोर वचनों का वर्जन करते हुए मृदु एवं मीठे वचनों से स्वकार्य साधता हो । ३. गुणवान : गुण अनेक प्रकार के होते हैं, फिर भी निम्न पाँच गुण जिसमें होते हैं वह गुणवान माना जाता है। १. स्वाध्याय - वाचना, पृच्छना आदि पाँच प्रकार का स्वाध्याय करता हो। २. करण - तप, नियम, वंदनादि अनुष्ठान करता हो। ३. विनय - गुरू इत्यादि का अभ्युत्थानादि विनय करने में प्रयत्नशील रहता हो। ४. सर्वत्र अनभिनिवेशी - हर कार्य में कदाग्रहरहित, सरल और प्रज्ञापनीय होता हो। ५. जिनवचन रुचि - जिनवचन - जिनाज्ञा में रुचि, श्रद्धा, इच्छा रखता हो।

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