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आठवाँ व्रत
अवतरणिका:
अब आठवें अनर्थदंड विरमण व्रत के चार प्रकार में से तीसरे प्रकार के अनर्थदंड विरमण व्रत के अतिचार बताते हैं - गाथा :
सत्थग्गि-मुसल जंतग-तण-कढे मंत-मूल-भेसज्जे। दिन्ने दवाविए वा, पडिक्कमे देसि सव्वं ।। २४ ।। अन्वय सहित संस्कृत छाया : शस्त्र-अग्नि-मुशल-यन्त्र-तृण-काष्ठे मन्त्र-मूल-भेषज्ये।
दत्ते दापिते वा, दैवसिकं सर्वं प्रतिक्रामामि।। २४ ।। गाथार्थ :
शस्त्र, अग्नि, मुसल, चक्की वगैरह यंत्र, तृण, काष्ठ, मंत्र, मूल, औषधि आदि वस्तुएँ स्वयं दी हों या अन्य के द्वारा दिलवाई हों तो उस विषय में जो कोई पाप लगा हो उसका मैं प्रतिक्रमण करता हूँ।