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वंदित्तु सूत्र करके, क्रोध से देना, अथवा वस्तु होने पर भी क्रोध से न देना - इत्यादि से 'मात्सर्य' नामक चौथा अतिचार लगता है।
कालाइक्कमदाणे - कालातिक्रम - दान देने के समय का उल्लंघन करना। भिक्षा देने के समय का उल्लंघन करना। दान देने की इच्छा न होने से भिक्षा का समय बीत जाने पर मुनि को बुलाने जाना जिससे वे कुछ न ले अथवा कम ले। यह कालातिक्रम' नामक पाँचवा अतिचार है।
चउत्थे सिक्खावए निन्दे - ‘अतिथि-संविभाग' नाम के चौथे शिक्षाव्रत के विषय में जो कोई भी अतिचार लगे हों, उनकी मैं निन्दा करता हूँ। ___ इस गाथा में पाँच अतिचार बताए हैं, परंतु उनके उपलक्षण से दूसरे भी अनेक
अतिचार समझने हैं। जैसे कि मुनि को निमंत्रण देना भूल जाना, मुनि भगवंत पधारें तब देश, काल या उनके स्वास्थ्य के अनुरूप आहार नहीं देना, उनको क्या अनुकूल होगा ऐसा सोचे बिना अपनी मर्जी से प्रतिकूल चीजों से पात्र को भर देना, भावना का अतिरेक होने के कारण पूर्वकर्म, पश्चात्कर्म दोष का ख्याल नहीं रखना, भिक्षा संबंधी ४२ दोषों की जानकारी लेकर निर्दोष आहार नहीं देना, दोषित को निर्दोष बताना वगैरह अनेक अतिचार हैं। इन सब अतिचारों को याद करके श्रावक उनकी निन्दा करता है और पुनः एसी गलती न हो जाए इसलिए सावध बनता है।
जिज्ञासा - अतिथि को दान देकर स्वयं भोजन करना - ऐसा व्रत स्वयं अपनी मर्जी से स्वीकारने के बाद उपरोक्त दोषों की संभावना कैसे हो सकती है ?
समाधान - मुनि को दान देने से कैसा विशिष्ट फल मिलेगा, यह जानते हुए भी दानांतराय कर्म एवं लोभादि कषायों के उदय के कारण दान देने के समय कभी ऐसे दोषों की संभावना रहती है। ऐसे दोषों के सेवन के बाद दोषों का पश्चाताप आदि हो तो ही यह व्रत टिकता है। वरना कृपणतादि दोषों के कारण दान न दे, देने वाले को रोके या देने के बाद बहुत दे दिया' वगैरह पश्चाताप करे तो व्रतभंग ही होता है। 6 गोचरी संबंधी ४२ दोषों की जानकारी योगशास्त्र, धर्मसंग्रह आदि ग्रन्थों से गुरुगम द्वारा
प्राप्त करें। .