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संलेखना व्रत
अवतरणिका:
ज्ञानाचार, दर्शनाचार तथा चारित्राचार रूप सम्यक्त्व मूलक बारह व्रत का स्वरूप तथा अतिचारों का वर्णन करके अब तपाचार के एक अति महत्त्व के भेदस्वरूप संलेखना व्रत के अतिचार बताते हैं। इस गाथा में सामान्यतः ‘जीवन के अन्त समय अवश्य स्वीकार करने योग्य संलेखना व्रत के कोई भी अतिचार मुझे न लगें' ऐसी प्रार्थना श्रावक करता है - गाथा:
इहलोए परलोए, जीविअ-मरणे अ आसंस-पओगे। पंचविहो अइआरो, मा मज्झ हुज्ज मरणंते।।३३।। अन्वय सहित संस्कृत छाया : इहलोके परलोके, जीविते मरणे च आशंसा-प्रयोगे।
पञ्चविधोऽतिचारः, मरणान्ते मम मा भवेत्।।३३।। गाथार्थ :
१. इहलोक-आशंसा-प्रयोग, २. परलोक-आशंसा-प्रयोग, ३. जीवितआशंसा-प्रयोग, ४. मरण-आशंसा-प्रयोग एवं ५. कामभोग-आशंसा-प्रयोग (कामभोग-आशंसा-प्रयोग ऐसा अर्थ जीविअ-मरणे और आसंस-पओगे के बीच वाले 'अ' शब्द से ग्रहण किया है), ये पाँच अतिचार अंत समय में भी मुझे न हों।