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वंदित्तु सूत्र
परलोए - परलोक के विषय में। परलोक-आशंसा-प्रयोग : परलोक संबंधी इच्छा करनी।
परलोक का अर्थ है मनुष्य लोक के अलावा अन्य लोक। इस तप के प्रभाव से मरकर मैं देव देवेन्द्र बनूँ, दैविक ऋद्धि-समृद्धि का स्वामी बनूँ अथवा मेरे तप के प्रभाव से आकर्षित होकर यहाँ आए हुए देव मेरी भक्ति या प्रशंसा करें, ऐसी इच्छा रखना वह ‘परलोक-आशंसा-प्रयोग' नामक दूसरा अतिचार है।
जीविअ - जीने के विषय में। जीवित-आशंसा-प्रयोग : जीने की इच्छा करनी।
इस व्रत का स्वीकार करने के कारण लोगों की तरफ से बहत मान-सम्मान, सत्कार प्राप्त होता हो तब इस अवस्था में अधिक जीने को मिले तो अच्छा, जिससे कीर्ति में वृद्धि हो', ऐसी इच्छा रखना । यह 'जीवित-आशंसा-प्रयोग' नामक तीसरा अतिचार है।
मरणे - मरण के विषय में। मरण-आशंसा-प्रयोग : मरने की इच्छा करनी । इस व्रत का स्वीकार करने के बाद द्रव्य-क्षेत्रादि की प्रतिकूलता के कारण, तथा पूजा, सत्कार, सम्मान आदि के अभाव में ऐसा विचार करना कि अब मुझे जल्दी मौत आ जाए तो अच्छा, यह ‘मरण-आशंसा-प्रयोग' नामक चौथा अतिचार
है।
अ आसंसपओगे - आशंसा के विषय में । कामभोग-आशंसा-प्रयोग : कामभोग की इच्छा करनी। इस तप के प्रभाव से, मरने के बाद मैं देवलोक में या मनुष्य लोक में जहाँ भी उत्पन्न होऊँ, वहाँ मुझे इच्छित काम भोग की प्राप्ति हो। ऐसी इच्छा रखना 'कामभोग-आशंसा-प्रयोग' नामक पाँचवाँ अतिचार है।
ये पाँचों अतिचार मात्र ‘संलेखनाव्रत' विषयक ही नहीं; परंतु कोई भी धर्मानुष्ठान करते हुए इन पाँचों में से किसी भी प्रकार की आशंसा दोषरूप ही है; क्योंकि