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संलेखना व्रत गाथा - ३३
वह प्रभु से प्रार्थना करता है कि, 'हे प्रभु! इस जीवन में तो ऐसे दोषों का सेवन नहीं हो, परंतु मरणांत समय भी ऐसे अतिचारों का आसेवन मुझ से न हो ।'
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जिज्ञासा : वर्तमान में अनशन व्रत का स्वीकार हो सकता है या नहीं ? समाधान : विशिष्ट ज्ञानी के अभाव के कारण वर्तमान में एक-एक उपवास के पच्चक्खाण पूर्वक साधक अनशन की ओर आगे बढ़ सकता है, परंतु दीर्घकाल के लिए (आजीवन) अनशन का स्वीकार नहीं हो सकता; तो भी अल्प समय के लिए इस व्रत का स्वीकार करने में कोई बाधा नहीं दिखाई देती । वर्तमान में भी, ‘जीवन-दीप बुझने का समय समीप आ रहा है', ऐसा महसूस होने पर आत्महितेच्छु साधक आमरण चारों आहार का त्याग कर, अपनी शय्या के अलावा क्षेत्र का त्याग कर, मौन धारण कर, मन को परमात्मा ध्यान में लीन बनाकर, अमुक छूट (आगार) रखकर, सागारिक अनशन स्वीकार कर सकता है। उत्तराध्ययन सूत्र का पाठ पढ़ते हुए भी लगता है कि श्रावक या श्रमण वर्तमान में यह सागारिक अनशन स्वीकार कर सकते हैं, फिर भी इस विषय में विशेषज्ञों को विमर्श करना चाहिए।
संलेखना व्रत संबंधी संभवित अतिचार इस प्रकार हैं -
इहलोए - इस लोक के विषय में ।
इहलोक - आशंसा - प्रयोग : इस लोक संबंधी इच्छा करनी ।
इस लोक का अर्थ है मनुष्यलोक । 'इस तप के प्रभाव से मरकर मनुष्य जीवन में चक्रवर्ती, राजा या श्रेष्ठी आदि बनूँ' ऐसी इच्छा रखना, अथवा इस तप के प्रभाव से मुझे मान-सम्मान मिले, मेरा सत्कार हो, अंतिम समय में मेरी सेवा - भक्ति अच्छी हो ऐसी इच्छा 'इहलोक - आशंसा-प्रयोग' नामक प्रथम अतिचार है। 2. 'सव्वावि अ अज्जाओ, सव्वेवि अ पढमसंघयणवज्जा। सव्वेवि देसविरया, पच्चखाणेण उमरंति । अत्र हि प्रत्याख्यानशब्देन भक्तपरिज्ञैव ज्ञेया ।
- उत्तराध्ययन सूत्र अर्थ - प्रथम संघयण वाली आर्याओं के अलावा सभी साध्वीयाँ और सभी देशविरतिधर श्रावक5-श्राविकाएँ पच्चक्खाण पूर्वक प्राण त्याग करते हैं । पच्चक्खाण का अर्थ यहाँ भक्तपरिज्ञा नामका अनशन है। (तीन प्रकार के अनशन की जानकारी सूत्र संवेदना ३ के अंतर्गत नाणम्मि सूत्र से मिलेगी ।)