Book Title: Sutra Samvedana Part 04
Author(s): Prashamitashreeji
Publisher: Sanmarg Prakashan

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Page 265
________________ २४२ वय सम्यक्त्व मूलक बारह व्रत या अन्य छोटे बड़े नियम | ज्यादातर पाप-बंध अनियंत्रित मन-वचन-काया से होते हैं । उनको नियंत्रित करने के लिए जो संकल्प किए जाते हैं, उन्हें व्रत या नियम कहते हैं। आत्म कल्याण के अभिलाषी श्रावक को शक्ति अनुसार व्रत - नियमों का स्वीकार करना चाहिए। एक पल भी विरति के बिना नहीं रहना चाहिए, परंतु प्रमाद आदि दोषों के कारण व्रत-नियम स्वीकार न किए हों या स्वीकार कर उनका यथायोग्य पालन न किया हो तो उन व्रतों के विषय में अतिचार लगता है। सिक्खा - ग्रहण शिक्षा एवं आसेवन शिक्षा । गुरूभगवंत से विनयपूर्वक सूत्र तथा अर्थ का ज्ञान पाना वह ग्रहण - शिक्षा है, एवं प्राप्त हुए सूत्र एवं अर्थ के सैद्धांतिक ज्ञान को जीवन में किस रीति से प्रयोग में लाना, उसका व्यवहारिक आचारात्मक ज्ञान पाना अर्थात् साधु को साधु की सामाचारी का एवं श्रावक को श्रावक की सामाचारी का शास्त्रानुसार किस तरह पालन करना है उसकी शिक्षा पाना, वह आसेवन' शिक्षा है। ये दोनों प्रकार की शिक्षाएँ शक्ति अनुसार प्राप्त नहीं की हों अथवा अविधि से प्राप्त की हों, प्राप्त करने के बाद उसका पालन जिस रीति से करना चाहिए उस रीति से नहीं किया हो, तो शिक्षा के विषय में अतिचार हैं। वंदित्तु सूत्र - गारवेसु - रस गारव, ऋद्धि गारव एवं शाता गारव: इन तीन प्रकार के गारव अथवा आठ प्रकार के मद के विषय में । गारव का अर्थ है गृद्धि या आसक्ति, अथवा गारव का अर्थ गुरुता या बड़प्पन भी होता है। ईष्ट भोजन के प्रति आसक्ति रसगारव है । धन, कुटुंब या वैभव आदि की आसक्ति ऋद्धि गारव है एवं कोमल शय्या, कोमल वस्त्र या पाँच इन्द्रियों के अनुकूल सामग्रियों के प्रति आसक्ति शाता गारव है तथा मेरे पास दूसरे से बेहतर जाति, लाभ, कुल, ऐश्वर्य, बल, रूप, श्रुत एवं तप हैं, इसलिए मैं कुछ हूँ - इस प्रकार का जो अभिमान है, वह आठ प्रकार का मद है। 2 गारव अथवा मद, मान 1 ग्रहणशिक्षा सामायिकादिसूत्रार्थग्रहणरूपा, आसेवनशिक्षा पुनः नमस्कारेण विबोध इत्यादिदिनकृत्यलक्षणा । अर्थदीपिका २. गौरवाणि जात्यादिमदस्थानानि तानि प्रतीतानि, ऋद्वादीनि वा - अर्थदीपिका

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