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वंदित्तु सूत्र
तव-चरण-करण-जुत्तेसु साहूसु - जो बारह प्रकार के तप में सदा उद्यत हैं तथा चरण-चरणसित्तरी एवं करण = करणसित्तरी से युक्त हैं, वैसे सुसाधु पधारे हों फिर भी दान न दिया हो तो दोष लगता है।
जो मुनिभगवंत बारह प्रकार के तप में रत हैं अर्थात् शक्ति अनुसार बाह्य एवं अभ्यंतर तप में सदा तत्पर रहते हैं, पाँच महाव्रत, दस यति धर्म, सत्रह प्रकार के संयम, दस प्रकार की वैयावच्च आदि सत्तर प्रकार से जो चारित्र धर्म की सुंदर ८ बारह प्रकार के तप का वर्णन सूत्र संवेदना -३ के अंतर्गत नाणम्मि' सूत्र में है। ९ 'चरण-सित्तरी' अर्थात् ७० प्रकार का चारित्र धर्म
५ महाव्रत - ‘सूत्र संवेदना भाग-१ में सूत्र नं. २ में देखिए' १० यतिधर्म - 'सूत्र संवेदना भाग-१ में सूत्र नं. २ तथा ३ देखिए' १७ प्रकार का संयम - पृथ्वी', पानी, अग्नि, वायु, वनस्पति', बेइन्द्रिय,
तेइन्द्रिय',चउरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय एवं अजीव की रक्षा करना, पारिष्ठापना, प्रमार्जना२,प्रतिलेखना३ तथा उपेक्षा, मन,
वचन ६, काया का शुभ व्यापार। १० प्रकार की वैयावच्च - आचार्य, उपाध्याय, स्थविर, तपस्वी, ग्लान, शैक्ष, साधर्मिक,
कुल, गण एवं संघ इन दस की सेवा-सुश्रुषा करना। ९ ब्रह्मचर्य की गुप्ति - 'सूत्र संवेदना भाग-१ सूत्र नं २ देखिए' ३ ज्ञानादि त्रिक - ज्ञान-दर्शन-चारित्र धर्म १२ प्रकार का तप - सूत्र संवेदना भाग ३ में नाणम्मि' सूत्र देखिए ४ कषायों का निग्रह - चार कषायों के स्वरूप के लिए देखिए सूत्र संवेदना भाग-१
७० (कुल) का पंचन्द्रिय सूत्र. १० 'करण-सित्तरी' अर्थात् ७० प्रकार का क्रियारूपी धर्म
४ पिंड विशुद्धि - निर्दोष आहार, वस्त्र, पात्र, शय्या करनी. ५ इन्द्रिय निरोध - 'सूत्र संवेदना भाग-१ में सूत्र नं. २ देखिए' ५ समिति
- 'सूत्र संवेदना भाग-१ में सूत्र नं. २ देखिए' १२ भावना - अनित्य, अशरण आदि बारह प्रकार कि भावना से भावित
होना. १२ प्रतिमा
- श्रमण की बारह प्रकार की विशिष्ट साधना करना २५ प्रतिलेखना - वस्त्र, पात्र को देखकर, जीव रहित करके उपयोग में लेना. ३ गुप्ति - 'सूत्र संवेदना' भाग-१, सूत्र नं.२ देखिए ४ अभिग्रह - द्रव्य, क्षेत्र, काल एवं भाव विषयक अभिग्रह लेना. ७० (कुल)