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वंदित्तु सूत्र
__ सत्थग्गि-मुसल-जंतग-तण-कढे मंत-मूल-भेसज्जे - शस्त्र, अग्नि, मुसल, घंटी आदि यंत्र, तृण, काष्ठ, मंत्र, मूल, औषधि।
३. हिंस्रप्रदान : हिंसा के साधन दूसरों को देना। दयावान श्रावक अपनी सभ्यता के कारण (दाक्षिण्य गुण से) कोई चीज़ देने से मना नहीं कर पाता ऐसे कोई विशिष्ट प्रसंग को छोड़कर नीचे बताई हुई हिंसाकारक वस्तुएँ श्रावक को स्वयं किसी को देनी भी नहीं चाहिए और अन्य से दिलवानी भी नहीं चाहिए। सत्थ - शस्त्र - चाकू, छुरी, तलवार, रिवॉल्वर, रायफल, बंदूक आदि
अनेक प्रकार के शस्त्र। अग्गि - अग्नि - अनेक प्रकार की अग्नि तथा अग्नि पैदा करने वाले साधन
जैसे कि माचिस, लाइटर आदि। मुसल - मुसल - कूटने का साधन, खरल, सांडणी, हल आदि। जंतग - यंत्र - घरघंटी, वॉशिंग मशीन, मिक्सर, गीज़र आदि अनेक प्रकार
के यंत्र। तण - तृण - दर्भ आदि घास अथवा जीवों को दूर करने वाली तृणरूप
औषधि। कढे - काष्ठ - ईंधन के लिए या औजार बनाने के लिए उपयोग में आने
वाली लकड़ी। 5. वृषभान् दमय क्षेत्रं, कृष षण्ढय वाजिनः।
दाक्षिण्याविषये पापोपदेशोऽयं न कल्पते।।७६ ।। वृत्तौ -'...सर्वत्र पापोपदेशनियमं कर्तृमशक्तेभ्योऽपवादोऽयमुच्यते। दाक्षिण्याविषय इति। बन्धुपुत्रादिविषयदाक्षिण्यवत: पापोपदेशोऽशक्यपरिहार: । दाक्षिण्याभावे तु यथा तथा मौखर्येण पापोपदेशो न कल्पते। यन्त्रलाङ्गलशस्त्राग्निमुशलोदूखलादिकम्। दाक्षिण्याविषये हिंसं नार्पयेत्करुणापरः ।।७७।। वृत्तौ - दाक्षिण्याविषय इति पूर्ववत्।
- योगशास्त्र तृ. प्र.