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वंदित्तु सूत्र
वत्थ - वस्त्र । मर्यादा की रक्षा के लिए अपने कुल एवं वैभव के अनुरूप वस्त्र परिधान श्रावक के लिए योग्य है, परंतु किसी के मन को आकर्षित करने के लिए, दुनिया को दिखाने के लिए, दुनिया में अच्छे दिखने के लिए एवं अपनी आसक्ति के पोषण के लिए भड़कीले, मर्यादा विहीन, उद्भट (असभ्य) वस्त्र परिधान करना अनर्थदण्ड है।
आसण - आसन । घर में उपयोगी फर्नीचर या घर की वस्तुएँ जैसे कि कुर्सी, टेबल, सोफा, क्यूरिओस या सजावट की सामग्री भी ज़रूरत से ज्यादा रखना, यह भी अनर्थदंड है।
आभरणे - अलंकार ।
शरीर की शोभा के लिए बहुत एवं उद्भट आभूषण, जेवर पहनना उनको बार-बार देखकर आनंद का अनुभव करना, उनकी प्रशंसा करना, उनका अभिमान करना, ये सब भी अनावश्यक होने से अनर्थदण्ड रूप हैं।
इसके अतिरिक्त, जीव जन्तु हैं कि नहीं उसका ख्याल किए बिना ईंधन, धान्य, जल आदि का उपयोग करना या कुतूहुल से संगीत श्रवण करना, नाच, सर्कसादि देखना, कामशास्त्र पढ़ना, उसमें बताई चेष्टाओं का परिशीलन करना, आसक्ति करना, जुआ-सुरापान, शिकार-चोरी वगैरह पाप व्यसनों का प्रयोग करना, जल क्रीडा करना, वृक्ष की डाल को झूला बनाकर झूलना, पुष्पादि तोड़ना, युद्ध देखना, शत्रु की संतान के साथ वैर रखना, राजा की, राज्य की, भोजन की या स्त्रियों की बातें करना, अति निद्रा लेना, खेल-कूद (Sports), सिनेमा, टी.वी., डान्स शो आदि देखना, इन्टरनेट पर अनावश्यक सर्किंग करना आदि भी प्रमादाचरण हैं तथा हँसना एवं वाचालतादि भी अनर्थदण्ड हैं।
पडिक्कमे देसि सव्वं - (उन विषयक) दिनभर में (जो कोई अतिचार लगा हो) उन सबंका मैं प्रतिक्रमण करता हूँ।