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वंदित्तु सूत्र
पेसवणे - प्रेष्य प्रयोग।
मर्यादित क्षेत्र से बाहर नौकरादि द्वारा वस्तु भेजना, 'प्रेष्य प्रयोग' नाम का दूसरा अतिचार है।
सद्दे - शब्दानुपात । नियंत्रित क्षेत्र से बाहर खड़े हुए नौकरादि को साक्षात् बुलाने में व्रतभंग का भय होने से खंखारकर या आवाज़ करके अपनी उपस्थिति जताना शब्दानुपात' अतिचार है।
रूवे अ - रूपानुपात और। झरोखा, अगासी, खिड़की या बालकनी आदि में खड़े रहकर, अपने रूप को जताकर , हद के बाहर रहे हुए व्यक्ति को अंदर आने का संकेत करना वह 'रूपानुपात' अतिचार है।
पुग्गलक्खेवे - पुद्गल का प्रक्षेपण। घर आदि स्थान में अपनी उपस्थिति जताने के लिए पुद्गल रूप कंकर, पत्थर, लकड़ी या अन्य कोई चीज़ फेंकना, पुद्गल-प्रक्षेप नामक पाँचवा अतिचार है।
देसावगासिअम्मी, बीए सिक्खावए निन्दे - ‘देशावकाशिक' नाम के दूसरे शिक्षाव्रत में जो अतिचार लगा हो उसकी मैं निन्दा करता हूँ।
इस व्रत को स्वीकार करने के बाद उसके निरतिचार पालन के लिए श्रावक स्वाध्याय आदि शुभ क्रियाओं में मन, वचन, काया का प्रवर्तन करता है तो भी अनादि से अभ्यस्त प्रमाद और क्रोधादि, व्रत को मलिन करते हैं। उपर बताए हुए अतिचारों के परिणाम से व्रतपालन में जो मलिनता आई हो उनकी मैं अन्त:करण से निन्दा करता हूँ। इस गाथा का उच्चारण करते हुए श्रावक सोचता है कि -
'सब पापों से मुक्त होकर संयम जीवन स्वीकार करने की मेरी शक्ति नहीं, तो भी अल्प समय के लिए द्रव्य-क्षेत्र-काल एवं भाव की मर्यादा निश्चित करके उससे मन को मुक्त करने के लिए मैंने इस व्रत का स्वीकार किया था; फिर भी