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ग्यारहवाँ व्रत
अवतरणिका :
अब ग्यारहवें पौषधोपवास व्रत के स्वरूप तथा अतिचारों को बताते हैंगाथा: संथारुच्चारविही - पमाय तह चेव भोयणाभोए। पोसहविहि - विवरीए, तइए सिक्खावए निंदे।।२९।। अन्वय सहित संस्कृत छाया :
संस्तारोच्चारविधिप्रमादे तथा च एव भोजनाभोगे। पौषध-विधि-विपरीते, तृतीये शिक्षाव्रते निन्दामि ।।२९ ।। गाथार्थ :
१. संथारने की तथा २. लघुनीति की तथा ३. बड़ी नीति की विधि में हुए प्रमाद के विषय में ४. भोजन आदि की चिंता करने में और ५. पौषध विधि विपरीत करने में, तीसरे शिक्षाव्रत विषयक जो कोई अतिचार का आसेवन हुआ हो उसकी मैं निन्दा करता हूँ।