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दसवाँ व्रत
अवतरणिका :
अब दसवें व्रत का स्वरूप तथा अतिचार बताते हैं - गाथा :
आणवणे पेसवणे, सद्दे रूवे अ पुग्गलक्खेवे।
देसावगासिअम्मी, बीए सिक्खावए निंदे।।२८।। अन्वय सहित संस्कृत छाया:
आनयने प्रेषणे, शब्द रूपे व पुद्गल-क्षेपे। देशावकाशिके द्वितीये शिक्षाव्रते निन्दामि ।।२८।। गाथार्थ :
(क्षेत्र मर्यादा का उल्लंघन करके कोई वस्तु) १. मंगवाना, २. भेजना, ३. आवाज़ करना, ४. रूप दर्शन कराना (अपने आप को प्रकट करना) एवं ५. कोई वस्तु फेंककर अपनी उपस्थिति जताना, देशावकाशिक नाम के दूसरे शिक्षाव्रत में इन पाँचों में से कोई भी अतिचार लगा हो तो उसकी मैं निन्दा करता हूँ।