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वंदित्तु सूत्र
ऐसे विचार करके श्रावक पुनः शुद्ध सामायिक व्रत में स्थिर होने का यत्न करता है। चित्तवृत्ति का संस्करण :
सामायिक में अतिचारों से मुक्त रहने के लिए साधक को निम्नोक्त मुद्दे पे चिंतन करना चाहिए।
सर्वज्ञ शासन के अलावा दुनिया में और कोई भी धर्म चौदह राजलोक के सभी पापों से मुक्त करवाए ऐसा सामायिक जैसा अनुष्ठान नहीं बताता । मेरा परम सौभाग्य है कि मुझे इस अनुष्ठान का सेवन करने का मौका मिला है । अगर मैं इस मौके को गँवा दूंगा तो न जाने भविष्य में मुझे कब ऐसा सुनहरा अवसर प्राप्त होगा । इसलिए मुझे अत्यंत सचेत बनकर सुयोग्य तरीके से सामायिक करना चाहिए और प्रमाद के वश होकर अविधि करने से दूर रहना चाहिए। ममता सर्वदुःखों का मूल है तो समता सर्वसुखों का मूल है । विधिपूर्वक सामायिक करने से तत्काल सर्व गुणों में शिरमौर एवं अत्यंत सुखप्रद ऐसे समता गुण की प्राप्ति होती है । इसलिए मुझे सामायिक निष्पन्न करने में उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। व्यापार और व्यवहार की व्यस्तता के कारण मुझे प्रायः अपने आप का निरीक्षण करने का समय ही नहीं मिलता । सामायिक संपूर्ण पाप प्रवृत्ति से मुक्त होने के कारण दोषों की पहचान करने का, उनकी गवेषणा करने का, उनसे मुक्त होने का उपाय खोजने का पूर्ण अवकाश देता है । मुझे ऐसे सुंदर अनुष्ठान करने के लिए हमेशा तत्पर रहकर अपना जीवन सफल करना चाहिए, पर सामायिक न करके या अविधि आदि करके दोषों को बढ़ाना नहीं चाहिए। सामायिक मेरी आत्मिक संपत्ति रूप दर्शन-ज्ञान-चारित्र रूपी रत्नत्रयी की प्राप्ति, शुद्धि और उन्नति (बढ़ोतरी) का सरल और सचोट उपाय है । वास्तविक समृद्धि पाना हो तो मुझे उसकी निर्दोष निष्पत्ति के लिए सदा प्रयत्नशील रहना चाहिए।