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वंदित्तु सूत्र
वन्नग - वर्णक । विशिष्ट प्रयोजन बिना, तथा अयतना पूर्वक शरीर को सजाने के लिए मेहंदी लगाना, गाल आदि पर कस्तूरी लगाना, दाँत, बाल रंगना, चेहरा रंगना, आँखबाल का रंग बदलना, ये सब अनर्थदंड रूप हैं। विलेवण - विलेपन ।
चंदन आदि का विलेपन जयणा का पालन किए बिना करना, फेसपैक, हर्बल पैक, ऑइल मसाज, आदि सब विलेपन कहलाते हैं। ऐसे विलेपनों में अयतना से या बेध्यान या अनावश्यक होनेवाली हिंसा अनर्थदंड है।
वैराग्य भाव से भावित श्रावक शक्य हो तो निरर्थक स्नान, उद्वर्तन आदि नहीं करता। परन्तु उसका शरीर के प्रति मोह संपूर्ण नष्ट नहीं होने के कारण कुछ संयोगों में उसे स्नान करना पड़ता है। स्नानादि करते हुए नाहक जीव हिंसा न हो जाए उसकी वह सावधानी रखता है, तो भी प्रमादादि दोषों के कारण जितनी अयतना होती है, उतना व्रत दूषित होता है।
सद्द - शब्द ।
प्रयोजन बिना बोलना या अनर्थकारी शब्दों का प्रयोग करना, जैसे कि जोर से चिल्लाना, संगीत में मशगूल हो जाना, अश्लील गीत गाना, शोर मचाना, बड़े बड़े माईक-स्पीकर लगाकर गाना-बजाना, निन्दा करना तथा प्रात: या रात्रि के समय जोर से बोलना जिसके कारण जीव-जंतु एवं जन समुदाय जागकर पाप कार्य आरंभ करें, ये सब प्रवृत्तियाँ अनर्थदंड हैं क्योंकि इनमें होनेवाली हिंसा में हमारे शब्द निमित्त बनते हैं।
रूव - रूप।
देह का रूप तथा रंग अनित्य है, अस्थिर है। कितना भी संभाला हुआ शरीर कब बीमारियों से घिर जाए एवं सुंदर रूप कुरूप बन जाए, वो समझ में नहीं आता। अत: ऐसे रूप की सार-संभाल के पीछे समय तथा शक्ति का व्यय करना अनर्थदण्ड रूप है।