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वंदित्तु सूत्र
सातवाँ व्रत
बाष्प, खनिज तेल, पेट्रोल या बिजली शक्ति से चलती फैक्टरियाँ, जीन, प्रेस, खेती के यंत्र ये सब यंत्र - पीलन नामक कर्मादान कहलाते हैं।
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१२) निल्लंछणं - निर्लांछन कर्म (अंगछेदन कर्म) ।
बैल, भैंसा तथा ऊँट आदि के नाक छेदने, गाय, भैंस, बैल, घोड़ा आदि को अंकित करना, दागना, बैल, घोड़ा आदि के लिंग को छेदना, ऊँट वगैरह की पीठ को पिघलाना वगैरह कार्यों द्वारा आजीविका चलाना निर्लांछन कर्म नामक कर्मादान व्यापार हैं।
१३) दवदाणं - दव-दान कर्म ।
आग लगाने का कर्म ‘दव- दान कर्म' है । शौक़ से या दुश्मनी से आग लगाना, सूखी घास-जंगल-वृक्ष आदि को जलाना, खेतों में हुई बेकार घास को जलाना, गुफाएँ अथवा मार्ग बनाने के लिए ब्लास्टिंग करना आदि दव- दान कर्म नामक कर्मादान व्यापार हैं।
१४) सर-दह-तलाय-सोसं - सरोवर, द्रह, तालाबों को सुखाने का कर्म । धान्य उगाने के लिए सरोवर, नदी, द्रहों में से नाला या नहर द्वारा पानी निकालना, कुआँ खाली करवाना, बोरवेल बनाना आदि जल शोषण कर्म हैं।
१५) असई पोसं च - और असती पोषण कर्म ।
असती अर्थात् कुलटा-व्यभिचारिणी स्त्री । उसका पोषण करना असती पोषण कर्म है। दास-दासियों, नटनियों, नपुंसकों आदि द्वारा हल्के धंधे करवाने के लिए उनका पालन करना, एकत्रित करना या अन्य तरीके से पालन-पोषण करना, उनके द्वारा वेश्याघर चलाना, सिंह- वाघ - चीता - रींछ आदि शिकारी प्राणियों को पालना, उनसे विविध खेल करवाना, उनको बेचना, तोता-मैना - श्वान आदि को पालना आदि असती पोषण कर्म कहलाता हैं ।
वजिज्जा
त्याग करना चाहिए।
मूल में पंद्रह प्रकार के कर्मादान बताए हैं। उनके अलावा भी इस प्रकार के व्यापारों का श्रावक को त्याग करना चाहिए ।
इन दोनों गाथाओं का उच्चारण करते समय श्रावक सोचता है कि -
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