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सातवाँ व्रत गाथा-२२-२३
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७) लक्ख : लाख का व्यापार ।
लाख के उपलक्षण से यहाँ उसके जैसे अन्य सावद्य द्रव्य ग्रहण करना है । जैसे मणशिल, गली, धातकी वृक्ष या जिसकी छाल एवं फूलों में से शराब बनती हो वे टंकणखार, साबुन बनाने वाले क्षार आदि का व्यापार करना 'लक्ष-वाणिज्य' कहलाता हैं।
८) रस : रसवाले पदार्थों का व्यापार ।
मध, मदिरा, मांस, मक्खन, दूध-दही, घी, तेल का व्यापार करना, रस के उपलक्षण से आसव, स्पिरिट, तेजाब, अचार, मुरब्बा, फिनाइल वगैरह प्रवाही पदार्थों का व्यापार करना, ये 'रस वाणिज्य' नामक कर्मादान का व्यापार हैं।
९) केस - द्विपद, चतुष्पद का व्यापार करना ।
यहाँ केस के उपलक्षण से केस वाले जीव का ग्रहण करना है । इसलिए पैसा लेकर स्त्री-पुरुषों को बेचना, दास-दासियों का या पशु-पक्षियों का व्यापार करना, 'केस - वाणिज्य' नामक कर्मादान का व्यापार है।
१०) विस - ज़हरीली वस्तुओं का व्यापार ।
शृंगिक आदि ज़हर, हरताल, वच्छनाग, सोमल आदि ज़हरीली वस्तुएँ, डी.डी.टी, मच्छर-जूं-चूहे मारने की दवाइयाँ तथा खेती में उपयोग आनेवाले जंतुनाशक रसायन आदि सब ज़हरीली चीज़ों का व्यापार, 'विष - वाणिज्य' कर्मादान व्यापार हैं।
नामक
एवं खु जंतपीलण - कम्मं निल्लंछणं च दवदाणं, सर - दह-तलायसोसं असई-पोसं च इस प्रकार यंत्रपीलन कर्म, निर्लांछन कर्म, दवदान कर्म, सरोवर - द्रह - तालाब वगैरह का शोषण कर्म एवं असती पोषण कर्म का ( श्रावक को त्याग करना चाहिए)।
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११) जंतपीलण - यंत्र- पीलन कर्म ।
तेल निकालने वाली चक्की, अनाज पीसने वाली चक्की, गन्ने का रस निकालने वाला सांचा, खांड, खांडणी, सांबेला, सराण, पवन चक्की, पाताल यंत्र, आकाश यंत्र आदि यंत्र चलाने का व्यापार यंत्र - पीलन कर्म है। इसलिए आज के समय में