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वंदित्तु सूत्र
की मदिरा बनती थी। आज तो अनेक द्रव्यों में से अनेक प्रकार की मदिरा बनती हैं। ऐसी मदिराओं के सेवन से जीव अपना संतुलन खो बैठता है, जिसके कारण उसमें महामोह क्लेश, निद्रा, रोष उत्पन्न होता हैं। हर जगह वह मज़ाक का पात्र बनता है। अनेक प्रकार के काम विकारों का भी वह भोग बनता है। परिणाम स्वरूप उसकी लज्जा, लक्ष्मी, बुद्धि एवं धर्म का नाश होता है एवं उसको भवांतर में भी दुर्गति में जाना पड़ता है। इसके अतिरिक्त मदिरा, मांस, मधु एवं मक्खन में उसी रंग के ही जीव सतत पैदा होते हैं। इन सब दूषणों का विचार करके श्रावक को मदिरा, मांसादि का पूर्णतया त्याग कर देना चाहिए। यहाँ विशेष ध्यान रखना है कि शास्त्रकारों ने शहद एवं मक्खन को भी मदिरा एवं मांस की तरह ही हिंसक महाविगई कहा है। इसलिए श्रावक को उसका तो अवश्य त्याग कर देना चाहिए।
मंसम्मि अ : मांस प्रसिद्ध है। जलचर, स्थलचर एवं खेचर जीवों के भेद से उनका मांस भी तीन प्रकार का होता हैं। कच्चे, पके हुए या पकते हुए मांसपेशिओं में निरंतर निगोद के जीवों की उत्पत्ति होती हैं। निर्दोष, निरपराधी जीवों को मार कर मांस का भक्षण करने वाले जीव नरकगामी बनते हैं। मांस भक्षण का निषेध जैन एवं जैनेतर शास्त्रों में अनेक जगह देखने को मिलता हैं। इसी कारण से श्रावक मांस भक्षण का त्याग करता हैं।
मांस भक्षण का त्याग करने के बाद श्रावक सतत नियम पालन में सावधान होता है, तो भी दवाई वगैरह लेने में, अनजाने में, अनुपभोग से कोई दोष लगा हो तो इस पद द्वारा उनकी निन्दा करता है।
अ : अ शब्द द्वारा बाईस अभक्ष्य और बत्तीस अनंतकाय का ग्रहण करना हैं।
पुप्फे अ फले अ गंधमल्ले अ - पुष्प, फल एवं 'अ' शब्द से अनजान फल-फूल तथा सुगंधी द्रव्य एवं माला के विषय में।
पुप्फे अ - अनेक प्रकार के फूल एवं 'अ' शब्द से अनजान फूल तथा जिनमें त्रस जीवों की ज्यादा उत्पत्ति हो वैसे फूल ।
फूल कभी खाने में तथा विशेषकर सुशोभान और शृंगार के लिए उपयोग में आते हैं। वैसे फूलों के उपभोग का त्याग अथवा नियम लेना चाहिए।