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सातवाँ व्रत गाथा-२०
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आपको बचाने के लिए और दुनिया भर के पदार्थों के प्रति आसक्ति एवं ममत्वभाव को तोड़ने के लिए मैं यह नियम ग्रहण करना चाहता हूँ।
मेरी आवश्यकता २० द्रव्य की हो, और यदि 'मैं ५० द्रव्य से अधिक का उपयोग नहीं करूँगा' - ऐसा नियम करूँ तो मेरे लिए नियम का पालन करना अत्यंत सरल बन जाएगा और फिर हरेक वस्तु का उपयोग करते समय जो नियम की स्मृति होनी चाहिए वह नहीं होगी। इसलिए मुझे तो २० द्रव्यों की ज़रूरत हो तो १५ द्रव्यों से अधिक द्रव्यों का उपयोग मैं नहीं करूँगा - ऐसा नियम लेना है, जिससे नियम की संकुचितता के कारण मेरे मन को नियंत्रण में लाने का मेरा मुख्य उद्देश्य खयाल में रहे एवं बेकार की रखी छूट से अधिक कर्मबंध भी न हो।।
नियम से अधिक चीजें तो मुझे उपयोग में लेनी ही नहीं हैं, परंतु मर्यादित वस्तुओं के उपभोग में भी मुझे रागादिकृत भावों से बचने का प्रयत्न करना हैं।
परम कृपालु परमात्मा से प्रार्थना करता हूँ कि, 'रोज़-रोज़ मेरे नियमों को संक्षिप्त करके मैं ऐसी शक्ति पैदा कर सकूँ कि जल्दी से जल्दी साधु जैसा निर्लेप जीवन स्वीकार कर सकूँ।'
उवभोगपरी(रि)भोगे बीयम्मि गुणव्वए निंदे - भोगोपभोग परिमाण नाम के दूसरे गुणव्रत में यदि कोई दोष लगा हो तो उनकी मैं निन्दा करता हूँ।
इस रीति से भोगोपभोग की सामग्री का नियंत्रण करने के बाद, कभी अनाभोग से या प्रमादादि दोषों से व्रत की मर्यादा टूट गई हो या व्रत द्वारा आसक्ति घटाने का लक्ष्य चूक गया हो, तो उन सर्व दोषों को याद करके इस गाथा का उच्चारण करते हुए उनकी निन्दा करनी चाहिए। चित्तवृत्ति का संस्करण :
विषयों की ओर चल रही अपनी पागल दौड़ को रोकने के लिए श्रावक को नित्य नीचे दिए गए विषयों पर विचार करके हृदय को वैरागी बनाने का प्रयास करना चाहिए। • विविध शास्त्रों में से भोग-उपभोग की अनर्थकारिता को बारबार पढ़कर, उस पर चिंतन करना चाहिए।