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तृतीय व्रत
वंदित्तु सूत्र
• लोभ से कर-चोरी करने का मन हो तब लोभ के कड़वे फल या चोरी का महापाप एवं उसके भयंकर परिणाम तथा सरकारी भय आदि का विचार करना। भौतिक साधनों से बड़प्पन नहीं है, परंतु उदारता आदि गुण समृद्धि से बड़प्पन है, ऐसा सोच कर अपनी कमाई के अनुसार ही खर्च करने का आग्रह रखना, जिससे अधिक कमाने की वृत्ति से चोरी करने
की कामना ही ना हो। • जीवन पद्धति ऐसी अपनानी चाहिए कि कम से कम वस्तुओं से जीवन निर्वाह हो जाए और अधिकतर सामग्री एकत्रित करने या उस के लिए चोरी
करने का मन ही न हो। • बचपन से ही जीवन में छोटी भी चोरी करने से रूकना एवं बच्चों को भी
रोकना, क्योंकि ऐसे कुसंस्कार ही भविष्य में बड़ी चोरी करने की प्रेरणा देते हैं और उसका आत्मविश्वास भी पैदा करते हैं। • चोरी करके अन्याय से या अनधिकृत तरीके से कमाया हुआ धन जीवन में
शांति नहीं देता, परंतु मन सतत भय, चिन्ता या मलिन विचारों से घिरा रहता है। • चोरी के कारण दूसरे अनेक पाप करने पड़ते हैं।