________________
वंदित्तु सूत्र
पत्नि में भी तीव्र आसक्ति न हो ऐसी सावधानी रखता है, तो भी प्रबल निमित्त के कारण कभी विषय भोग में तीव्र आसक्ति हो तो वह इस व्रत का पाँचवाँ अतिचार है । इस अतिचार से बचने के लिए श्रावक को किसी भी स्त्री में आसक्ति न हो, इसका ध्यान रखना चाहिए।
१३२
पुरुषप्रधान धर्म होने से यहाँ पुरुष आश्रित व्रत तथा उसके अतिचार बताए हैं, परंतु उनके उपलक्षण से स्त्रियों के लिए 'स्वपुरुषसंतोष' एवं 'परपुरुषगमन विरमण व्रत' भी समझ लेना चाहिए । परपुरुष के साथ रागादि की अधीनता से किए गए व्यवहार से भी व्रत मलिन होता हैं । अतः अतिचार रूप ही है।
इस प्रकार स्त्री एवं पुरुष के इस व्रत विषयक प्रमुख पाँच अतिचार बताए । इसके अलावा रागादि भाव से किसी स्त्री, पुरुष या बालक को देखना, उनका स्पर्श करना, उस संबंधी मन में कोई विकृत विचारणा करना, वाणी का अनुचित व्यवहार करना, स्वप्न में किसी दोष का सेवन करना इत्यादि छोटे-बड़े विभिन्न अतिचारों का भी व्रतधारी श्रावक को ध्यान रखना चाहिए।
चउत्थवयस्सइआरे, पडिक्कमे देसिअं सव्वं दिनभर में लगे हुए चौथे व्रत के अतिचारों का मैं प्रतिक्रमण करता हूँ ।
'चौथे व्रत के विषय में ऊपर बताए हुए छोटे-बड़े किसी भी अतिचारों का दिन भर में सेवन हुआ हो तो उनको याद करके, उसके प्रति घृणाभाव प्रकट करके, मैं उन सब अतिचारों से वापस लौटता हूँ, पुन: वैसा न हो ऐसा संकल्प करता हूँ।' इस तरह सोचकर श्रावक सब अतिचारों का प्रतिक्रमण करता है ।
ब्रह्मचर्य व्रत का खंडन महापाप है। उससे दुर्भाग्यपन, वंध्यापन प्राप्त होता है तथा दुर्गति का भाजन होना पड़ता है। काम की तीव्र आसक्ति से ही चक्रवर्ती का स्त्रीरत्न छट्ठी नरक में जाता है और द्रव्य से भी ब्रह्मचर्य व्रत को पालनेवाला चक्रवर्ती का अश्वरत्न स्वर्ग में जाता है।
ब्रह्मचर्य के पालन से वीर्य - शक्ति बढ़ती है, इन्द्रियाँ तेजस्वी बनती हैं; जब कि बार-बार मैथुन के सेवन से शरीर क्षीण होता है, इन्द्रियों की हानि होती है, वीर्य का नाश होता है।
5. कम्पः खेदः श्रमो मूर्छा भ्रमिग्लनिर्बलक्षयः ।
राजयक्ष्मादयश्चापि, कामाद्यासक्तिजा रुजः ।।
- अर्थदीपिका