________________
द्वितीय व्रत गाथा - १२
लिखवाना, झूठे हिसाब-किताब लिखना, बेईमानी करना; मुद्दा, मोहर, अक्षर बदल देना इत्यादि ‘कूट लेख' नामक पाँचवाँ अतिचार है।
आम तरीके से समझ में आता ही है कि झूठ नहीं बोलना तो लिख कैसे सकते हैं ? परंतु लोभादि कषाय के अधीन हुआ श्रावक सोचता है कि, 'मैंने झूठ नहीं बोलने का व्रत लिया है, झूठ नहीं लिखने का व्रत नहीं लिया'। ऐसा मानकर अगर वह गलत लिखता है तो उसकी व्रत पालन की इच्छा होने से उसका व्रत भंग नहीं होता पर ऐसी प्रवृत्ति उसके व्रत को मलिन तो करती ही है, इसलिए उसको अतिचार कहा है।
११३
यहाँ इतना ज़रूर खयाल रखना है कि इन पाँचों अतिचारों का जो इरादे पूर्वक सेवन करता है, उसका तो व्रत भंग' ही होता है, परंतु जो अपने व्रत का स्वरूप जानता हो एवं अपनी मति से उसे ऐसा लगे कि इस क्रिया से मेरा व्रत भंग नहीं होगा और उस वक्त उसे वह क्रिया करनी ही पड़े, तो व्रत सापेक्ष भाव होने से उसका व्रत भंग नहीं होता, पर उस में अतिचार लगने से व्रत मालिन्य तो होता ही है। मुझे यह कार्य अभी करना ज़रूरी है । इसलिए व्रत सापेक्ष भाव से शायद इन दोषों का सेवन हो तो ही ये अतिचार की श्रेणी में आ सकते हैं।
दूसरे व्रत संबंधी दिनभर
बीयवयस्सइआरे, पडिक्कमे देसिअं सव्वं
में लगे सर्व अतिचारों का मैं प्रतिक्रमण करता हूँ ।
'दिनभर में दूसरे व्रत संबंधी छोटे बड़े किसी भी अतिचार का मुझ से सेवन हुआ हो तो उन सब अतिचारों को याद करके उनकी आलोचना, निन्दा एवं गर्हा करता हूँ और पुनः इन दोषों का सेवन न हो इसके लिए जागृत रहता हूँ' । ऐसा विचार करके श्रावक ऊपर बताए हुए सब अतिचारों का प्रतिक्रमण करता है।
2. सहसब्भक्खाणाई जाणंतो जइ करिज्ज तो भंगो
जइ पुणऽणाभोगाईहिंतो तो होई अइयारु त्ति ।। १ ।।
-हितोपदेशमाला गाथा. ४१७ वृत्तौ
सहसा अभ्याख्यान आदि को अतिचार जानकर भी यदि आचरण करे तो व्रत भंग ही है और यदि अनाभोग से आचरण करे तो अतिचार है।