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वंदित्तु सूत्र
बातों को सबके सामने कहकर दूसरे को गिराने, हलका दिखाने आदि की हीन एवं पाशवी वृत्ति पैदा हो सकती हैं । कषायग्रस्त इस अवस्था में श्रावक भी ऐसा बोलने से सामने वाले व्यक्ति की क्या हालत होगी, इसका जरा भी विचार किए बिना गुप्त बात प्रकट करने की भूल कर सकता है। ऐसा करने से विश्वासघात होता है। सामने वाले व्यक्ति को अत्यंत दुःख होता है। कभी-कभी तो किसी व्यक्ति की अकाल मृत्यु भी हो जाती है। इसलिए श्रावक को सजग रहकर ऐसा कभी भी नहीं करना चाहिए ।
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मोसुवएसे अ - और मृषा उपदेश - गलत उपदेश देना।
मृषा उपदेश देना अर्थात् गलत उपदेश देना । जैसे कि किसी को अहितकारी या गलत सलाह देना कि ‘किसी का गलत सहन नहीं करना। एक बार तो स्पष्ट सुना ही देना जिससे बार-बार सुनना ना पड़े ' - ऐसा उपदेश संक्लेश की वृद्धि के साथ दोषों का पोषक भी बनता है। इसलिए ऐसी सलाह को 'मृषा उपदेश' कहते हैं। मंत्र-तंत्र अथवा औषधि के बारे में खुद को कोई भी जानकारी न होने पर भी दूसरों को वह सिद्ध करने के उपाय बताना अथवा जिसमें हिंसा की बात हो ऐसे शास्त्रों को पढ़ाना आदि भी 'मृषा उपदेश' नामक चौथा अतिचार है।
गलत सलाह देना यह जैसे मृषा उपदेश कहलाता है, उसी प्रकार गलत तरीके से उपदेश देना भी मृषा उपदेश कहलाता है। जैसे कि सामने वाले व्यक्ति की योग्यता, उसका संयोग, उसकी भूमिका आदि का विचार किए बिना उससे दानशील - तपादि धर्म की सूक्ष्म बातें करना, अनधिकारी व्यक्ति के सामने शास्त्र का रहस्य प्रकट करना इत्यादि। ऐसा उपदेश अच्छा होते हुए भी परिणाम नुकसानदायक होने से मृषा उपदेश कहलाता है।
इस प्रकार के सब कथनों में प्रत्यक्ष मृषावाद नहीं होता, तो भी 'स्व-पर के द्रव्य-भाव हिंसा से दूर रहने का इस दूसरे व्रत का जो मूल हेतु है वह तो ऐसे कथनों से नष्ट ही होता है। यद्यपि सापेक्षता से ऐसे उपदेश से व्रत नष्ट नहीं होता, फिर भी व्रत में मलिनता तो आती ही है, इसलिए इसको अतिचार कहते हैं।
कूडलेहे अ - कूट लेख, झूठे दस्तावेज तैयार करना।
ग्राहक को, समाज को या सरकार को ठगने के लिए करचोरी करनी, सम्पत्ति बचाने के लिए या अन्य किसी तरीके से फायदा उठाने के लिए झूठे लेख