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वंदित्तु सूत्र
अवतरणिका :
अब द्वितीय व्रत की मर्यादा का किस प्रकार उल्लंघन हो सकता है, वह सूचित करने के लिए द्वितीय व्रत के अतिचार बताते हैं - गाथा :
सहसा-रहस्सदारे, मोसुवएसे अ कूडलेहे अ। बीयवयस्सइआरे, पडिक्कमे देसिअं सव्वं ।। १२ ।। अन्वय सहित संस्कृत छाया :
सहसा-रह:-स्वदारेषु, मृषोपदेशे च कूटलेखे च। द्वितीयव्रतस्य अतिचारान् दैवसिकं सर्वम् प्रतिक्रामामि।।१२।। गाथार्थ :
१. सहसा कथन करना २. रहस्य को प्रकट करना ३. स्वदारामंत्रभेद, ४. मृषा उपदेश एवं ५. कूटलेख ऐसे दूसरे व्रत के पाँच अतिचारों का दिन भर में जो आसेवन हुआ हो उन सबका मैं प्रतिक्रमण करता हूँ। विशेषार्थ :
व्रतधारी श्रावक असत्य के कटु फलों के बारे में सोचकर मन को ऐसा तैयार कर लेता है कि प्राय: उससे असत्य बोला ही ना जाए, तो भी प्रमाद के कारण अप्रशस्त कषायों के अधीन होकर अथवा अनाभोगादि से कभी किसी को आघातउपघात हो ऐसे वचन बोलने में आए तो व्रत में अनेक प्रकार की मलिनता पैदा होती हैं। व्रत को मलिन करने वाले अनेक प्रकार के दोषों का संक्षेप करके, सामान्य से, इस गाथा में पाँच अतिचार बताए हैं।
सहसा' - सहसा अभ्याख्यान, बिना सोचे समझे एकाएक बोलना।
दूसरे व्रतधारी श्रावक को किसी के विषय में किसी भी प्रकार का अभिप्राय/ 1. सूचनात् सूत्रम्- अल्पाक्षरं बहवः अर्थप्रतिपादकं सूत्रम् - ‘मात्र सूचना देने वाला होता है
वह सूत्र कहलता है। इस अर्थ से गाथा में सहसा शब्द से सहसाभ्याख्यान, रहः शब्द से रहोभ्याख्यान, स्वदारा शब्द से स्वदारा मंत्र भेद समझना है।