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तृतीय व्रत गाथा-१४
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तेनाहड-स्तेनाहृत - स्तेन = चोर, आहृत-लाया हुआ। चोरी की हुई वस्तु को ग्रहण करना। ___ चोरी किया हुआ सोना, चांदी या अन्य मूल्यवान चीजें, वस्तुओं को पकड़े जाने के डर से चोर अत्यंत कम कीमत में बेच देता है। इस स्थिति में कोई भी श्रावक लोभवश इन चीज-वस्तुओं को खरीद ले तो उसे इस व्रत विषयक प्रथम अतिचार लगता है। तेन-पओगे=स्तेन प्रयोग - स्तेन = चोर। प्रयोग = प्रेरणा, उत्तेजना।
चोर को चोरी करने की प्रेरणा देना स्तेन प्रयोग है। चोर के साथ लेने-देने का व्यवहार रखना, चोरी करने के बाद उसकी प्रशंसा करना, चोरी के लिए ज़रूरी उपकरण देना, रहने के लिए आश्रय देना, अन्न-पानी देना आदि द्वारा चोर को चोरी करने की प्रेरणा देना, यह दूसरा अतिचार है। _ 'मुझे चोरी नहीं करनी', इस प्रकार के व्रत धारक श्रावक को चोरी की वस्तु लेना या सीधे या उल्टे तरीके से चोर का उत्साह बढ़े ऐसा कुछ भी करना, यह सब परमार्थ से आंशिक व्रतभंग स्वरूप होने से अतिचार रूप है। तप्पडिरूवे - अच्छे माल में खराब या नकली माल की मिलावट करना।
असली के समान दिखाई देती हुई नकली वस्तु को असली कहकर बेचना, जैसे कि वेजीटेबल घी को यह शुद्ध घी है' ऐसा कहकर शुद्ध घी के भाव से बेचना। तांबा-पित्तल मिश्रित सोने को यह शुद्ध सुवर्ण है' ऐसा कहकर शुद्ध सोने के भाव बेचना। इस तरीके से नकली वस्तु को असली वस्तु के भाव बेचना, यह
1. चौरश्चोरापको मन्त्री भेदज्ञ: काणकक्रयी।
अन्नद: स्थानदश्चेति चौर: सप्तविधः स्मृतः ।। चोरी करने वाला, चोरी कराने वाला, चोरी की चर्चा, विचारणा (मंत्रणा) करने वाला, चोरी के भेद का जानकार, चोरी के माल का खरीददार, चोर को अन्न-पानी देने वाला,
चोर को आश्रय देने वाला ऐसे चोर के सात प्रकार हैं। - श्री तत्त्वार्थसूत्रगम सूत्र अ.७ सूत्र २२ 2. (तेण) पप्ओगे - चोर को चोरी करने की प्रेरणा देना।
सूत्र में जब कि 'पओगे' ही शब्द है, तो भी 'सूचनात् सूत्रम्' इस कथन से 'पओगे' शब्द से स्तेन प्रयोग शब्द का ग्रहण करना है।