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तृतीय व्रत
अवतरणिका:
अब तृतीय व्रत के स्वरूप तथा अतिचारों को बताते हैं - गाथा :
तइए अणुव्वयम्मी, थूलग-परदव्वहरण-विरईओ।
आयरिअमप्पसत्थे, इत्थ पमायप्पसंगेणं।।१३।। अन्वय सहित संस्कृत छाया:
प्रमादप्रसङ्गेन अप्रशस्ते अत्र तृतीय-अणुव्रते। . स्थूलक-परद्रव्यहरण-विरतित: अतिचरितम् ।।१३।। गाथार्थ :
जब प्रमाद के वश होकर अप्रशस्त भाव प्रकट हुआ हो तब इस तीसरे अणुव्रत में अन्य की मालिकी के द्रव्य की स्थूल चोरी करने की विरति (का उल्लंघन करने) से दिनभर में जो कुछ विपरीत आचरण हुआ हो, (उन सबका मैं प्रतिक्रमण करता हूँ)।