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द्वितीय व्रत गाथा-१२
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• जब भी क्रोधादि कषायों की मात्रा अधिक प्रमाण में हो तब मौन धारण कर
लेना। • स्व-प्रशंसा एवं पर-निन्दा से दूर रहना। • बोलने से पहले सोचना कि मेरे बोलने से अन्य को शारीरिक या मानसिक
आदि पीड़ा तो नहीं सहनी पड़ेगी ? विकथा आदि से दूर रहना। • पाँचों इन्द्रियों के बाह्य विषय तथा अन्य व्यक्ति संबंधी अपने मंतव्य देने में
सावधानी रखना। • कोई पूछे तो भी १) वैरभाव उत्पन्न करे, २) किसी की गुप्त बात प्रकट करे,
३) कठोर, ४) शंकास्पद, ५) हिंसात्मक एवं ६) निन्दा-चुगली जैसे वचन नहीं बोलना।