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वंदित्तु सूत्र
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• हलन चलन की या लेने रखने इत्यादि की कोई भी क्रिया करते हुए जीव हिंसा न हो या किसी का मन ना दुःखे एवं अपने या अन्य के काषायिक भावों में वृद्धि न हो, इसकी हमेशा जागृति रखनी चाहिए।
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प्रथम व्रत
अकारण होनेवाली हिंसा से बचने के लिए वॉटर पार्क (जल - उद्यान), हिल स्टेशन जैसे आनंद-प्रमोद के स्थानों का सर्वथा त्याग करना चाहिए ।
• हिंसक प्रवृतियों में रत परिचितों से हमेशा दूर ही रहना चाहिए।
• व्रत लेने के बाद सतत उसका स्मरण करना चाहिए। विस्मृति अथवा अन्यमनस्कता भी व्रत के अतिचार हैं।
• इस व्रत के यथायोग्य पालन के लिए कुमारपाल महाराजा अपने हाथी-घोड़े आदि को छानकर पानी देते थे एवं घोड़े आदि की जीन के ऊपर पूंजणी बंधवाते थे। उनके जैसे श्रावकों को याद करके प्रमाद भाव त्याग कर अपने जीवन व्यवहार को भी अत्यंत जयणा प्रधान बनाना चाहिए।
• घर में हिंसा के भरपूर साधन तो होते ही हैं फिर भी जितनी हिंसा से बचना मुमकिन हो उतनी हिंसा से बचने के लिए जीवदया या रक्षा के साधन जैसे कि, पूंजनी, चरवली, मुलायम झाडू आदि भी घर में रखने चाहिए। संखारादि' का उपयोग करना चाहिए। अहिंसा के पालन के लिए घर में ७ छलनियाँ एवं १० चँदरवें रखने चाहिए। कचरा साफ करने के लिए
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9. संखारा जैन पारिभाषिक शास्त्रीय शब्द है । पानी छालने के बाद छलनी में जो कचरा या जीव-जन्तु इकट्ठे होते है उसे संखारा कहते है । इस संखारे के जीव अपना आयुष्य शांति पूर्ण कर सकें इसलिए उन्हे एक छोटे भाजन में वही पानी लेकर रख देना चाहिए या तो जिस कुएँ में से पानी लाया हो उसी कुएँ में वापस रख देना चाहिए ।
10. ७ छलनी : १. पानी छानने के लिए, २. घी छानने, ३. तेल छानने, ४. लस्सी / छ छानने ५. दुध छानने, ६. उबला हुआ पानी छानने और ७. आँटा छानने । 11. चंदरवें :
१. जिन भवन, २. पौषध शाला, ३. सामायिक शाला, ४. भोजन गृह, ५. वलोणा करने के स्थान पर, ६. खांडणे के स्थान पर, ७. पिसने या पुरस्कारी करने के स्थान पर, ८. चूले पर, ९. पाणीयारे पर, १०. सोने के स्थान पर.