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वंदित्तु सूत्र
आयेगा कि मैं संयम जीवन को स्वीकार कर सर्वथा हिंसा से बच कर, अहिंसक भाव रूप मेरे अपने भावों में स्थिर होकर आत्मानन्द अनुभव कर पाऊँगा।' अवतरणिका :
देशविरति रूप चारित्र बारह व्रत स्वरूप है। इन व्रतों को तीन विभागों में बाँटकर उनका पालन करते हुए जो अतिचार लगे हों उनका सामुदायिकरूप से प्रतिक्रमण करते हुए कहते हैंगाथा : पंचण्हमणुव्वयाणं गुणव्वयाणं च तिण्हमइआरे। सिक्खाणं च चउण्हं पडिक्कमे देसि सव्वं ।।८।। अन्वयसहित संस्कृत छाया: पञ्चानाम् अणुव्रतानां त्रयाणां च गुणव्रतानाम्।
चतुर्णां शिक्षाणां अतिचारान् दैवसिकं सर्वम् प्रतिक्रामामि ।।८।। गाथार्थ :
पाँच अणुव्रतों, तीन गुणव्रतों एवं चार शिक्षा व्रतों संबंधी दिनभर में (लगे हुए) सर्व अतिचारों का मैं प्रतिक्रमण करता हूँ। विशेषार्थ :
पंचण्हमणुव्वयाणं (अइयारे) - पाँच अणुव्रतों के (अतिचारों का)। १. महाव्रत की अपेक्षा छोटे एवं पालने में सुगम व्रत को अणुव्रत कहा जाता है अथवा २. जिस व्रत का क्षेत्र मर्यादित है, उसको अणुव्रत कहते है अथवा ३. अनु=पीछे, जो व्रत सम्यक्त्व प्रकट होने के बाद पीछे से प्राप्त होते हैं उन्हें अणुव्रत कहते हैं। ये अणुव्रत पाँच प्रकार के हैं : १. स्थूल प्राणातिपात विरमण व्रत : स्थूल हिंसा नहीं करनी । २. स्थूल मृषावाद विरमण व्रत : स्थूल झूठ नहीं बोलना। ३. स्थूल अदत्तादान विरमण व्रत : स्थूल चोरी नहीं करना।