________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
श्रीस्थानाङ्गसूत्र
सानुवाद
॥ १९ ॥
www.kobatirth.org
१ पोतानो अनुभव.
असिद्ध छे. तथा सर्वज्ञ हेतुथी बधा मनुष्यो सर्वदा अने सर्व स्थले आत्माने जोता नथी एम कहेवाने तमे समर्थ नथी. वळी कई विशेष कहे छे-घडानी माफक प्रत्यक्षादि प्रमाणोवडे साक्षात्कार होवाथी आत्मा छे. आ हेतु असिद्ध नथी जेथी अमारा जेवा वगेरेने पण प्रत्यक्षथी आत्मा जणाय छे. आत्मा ज्ञानथी भिन्न नथी, कारण के ज्ञान आत्मानो धर्म छे ज्ञान स्वसंवेदनरूप छे अने प्रथम नीलनुं ज्ञान उत्पन्न थयेलं हतुं इत्यादिनी जे स्मृति थवा पामे छे ते ज्ञाननुं स्वसंवेदनपणुं छे. स्वसंवेदन ज्ञान न थये छते स्मृति थती नथी. ( जो स्मृति थती होय तो ) प्रमाता ( जाणनार ) ना बीजा ज्ञाननी ( नहिं अनुभवेल ज्ञानी ) स्मृति थवानो प्रसंग आवशे. ते माटे आत्माथी अव्यतिरिक्त (अभेद ) ज्ञानरूप गुणनुं प्रत्यक्षपणुं छते गुणी जे आत्मा ते प्रत्यक्ष ज छे. अहिं दृष्टांत कहे छे-घटना रूप गुणनो प्रत्यक्ष थये छते गुणी जे घट ते प्रत्यक्ष थाय छे. कर्तुं छे के— गुणपच्चक्रवत्तणओ, गुणी वि जीवो घडोव्व पञ्चक्खो । घडओव्व घिप्पइ गुणी, गुणमित्तग्गहणओ जम्हा ॥ ४२ ॥ अण्णोऽणन्नो व गुणी होज गुणेहिं ?, जइ णाम सोऽणन्नो । णाणगुणमत्तगहणे, घिप्पड़ जीवो गुणी सक्खं ॥ ४३ ॥
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
For Private and Personal Use Only
१. स्थानाध्ययने आत्म
सिद्धिः
२ सूत्रम् .
॥ १९ ॥