Book Title: Sthanang Sutram Sanuvadasya
Author(s): Sudharmaswami, Abhaydevsuri
Publisher: Abhaydevsuri

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Page 283
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१ अने गंधिलावती ३२ ए विजयो दरेक बब्बे छे. (५). क्षेमा १, क्षेमपुरी २, रिष्ट ३, रिष्टपुरी ४, खड्गी ५, मंजूषा ६, औषधि ७, पुंडरीकिणी ८, सुसीमा ९, कुंडला १०, अपराजिता ११, प्रभंकरा १२, अंकावती १३, पक्ष्मवती १४, शुभा १५, रत्नसंचया १६, अश्वपुरी १७, सिंहपुरी १८, महापुरी १९, विजयपुरी २०, अपराजिता २१, अपरा २२, अशोका २३, विगतशोका २४, विजया २५, वैजयंती २६, जयंती २७, अपराजिता २८, चक्रपुरी २९, खड्गपुरी ३०, अवध्या ३९ अने अयोध्या ३२ - आवत्रशि विजयोनी क्रमशः बब्बे राजधानीओ छे. (६). वे भद्रशालवन, बे नंदनवन, वे सोमनसवन अने वे पांडुकवन छे. वे पांडुकंबलशिला, अतिपांडुकबलशिला, वे रक्तकंबलशिला अने वे अतिरक्तकंबलशिला छे, वे मेरुपर्वत छे, मेरुपर्वतनी बे चूलिका छे. धातकी खंड नामना द्वीपनी वेदिका वे गाउ ऊंची कहेली छे. (७). ( सू० ९२) कालोदधि समुद्रनी वेदिका वे गाऊनी ऊंची कहेली छे. पुष्करवरद्वीपार्श्वना पूर्वार्धने विषे मेरुपर्वतनी उत्तर अने दक्षिण दिशाए वे क्षेत्र कहेला छे. ते बहुसमतुल्य यावत् भरत अने ऐरवत, तेमज यावत् बे कुरुक्षेत्र कह्या छे ते देवकुरु अने उत्तरकुरु नामना छे. ते बे कुरुक्षेत्रमां अतिशय शोभावाला वे महान् वृक्षो कह्या छे तेना नाम - कूटशाल्मली अने पद्मवृक्ष. ते वृक्षोना अधिष्ठाता वे देवो सुपर्णकुमार जातीय वेणुदेव अने पद्म नामना छे. यावत् त्यां सुधी जाणी लेवुं के छ प्रकारना कालने एटले छ आराना अनुभाव ने भोगवता थका त्यांनां मनुष्यो (भरत तथा ऐखतमां) विचरे छे. (१). पुष्करवरद्वीपार्थना पश्चिमार्धने विषे मेरुपर्वतनी उत्तर अने दक्षिण दिशाए वे क्षेत्र कह्या छे ते आ प्रमाणे- पूर्वनी माफक जाणी लेवुं. विशेष ए कहे छे-वृक्षो कूटशाल्मली अने महापद्म नामना छे. देवो ( तेना अधिपति ) सुवर्णकुमारजातीय वेणुदेव अने पुंडरीक नामना छे. पुष्करवरद्वीपार्द्धद्वीपने विषे वे भरत, बे For Private and Personal Use Only

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