Book Title: Sthanang Sutram Sanuvadasya
Author(s): Sudharmaswami, Abhaydevsuri
Publisher: Abhaydevsuri
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इच्छयठाणणे गुणं, पणसुन्नं चउरसीतिगुणितं च । काऊणं तइवारे, पुव्वंगाईण मुण संखं ॥११८॥
प्रथम पांच शून्य ( मींडा) लखवा, पछी इच्छित स्थान अहिं एक अंक ( एकडो ) लखवी तेने एकवडे गुणवाथी ते ज संख्या थाय अर्थात् एक लाख थाय, तेने चोराशीवडे गुणवाथी चोराशी लाख थाय, ए पूर्वागनुं प्रमाण थयुं ज्यारे पूर्वनुं प्रमाण जाणवाने इच्छीए त्यारे पांच शून्य अने इच्छित बीजो अंक (८४) लखवो अर्थात् चोराशी लाखने चोराशी लाखवडे गुणवा त्यारे पांच शून्यने पांच शून्यवडे गुणवाथी बमणा शून्य ( दश ) थाय अने चोराशीना अंकने चोराशीना अंकवडे गुणवाथी ७०५६ थाय एटले सर्व मळीने ७०५६०००००००००० संख्या थाय. एवी रीते आगळ पण गुणाकार यावत् शीर्षप्रहेलिका थाय त्यां सुधी कर. शीर्षप्रहेलिका पर्यंत सांव्यवहारिक संख्यातकाल छे. तेनावडे प्रथम पृथिवी ( रत्नप्रभा ) ना नारकोनुं, भवनपति अने व्यंतरोनुं तथा भरत, ऐवत क्षेत्रने विषे सुपमदुष्पम समय(त्रीजा आरा) ना पश्चिम - ऊतरता भागमां मनुष्य अने तिर्यचोना आयुष्यनुं मान कराय छे. परंतु शीर्षप्रहेलिकानी उपर पण संख्यात काल छे ते अतिशय ज्ञानी सिवायना मनुष्योने व्यवहारनो विषय थतो नथी, एम जाणीने उपमाने विषे दाखल करेल (बतावेल) छे. ए ज कारणथी शीर्षप्रहेलिकाथी आगळ पल्योपम वगेरे (काळ) नो उपन्यास करेल छे. तेमां पल्यकडे उपमा छे जेओमां ते पल्योपमो असंख्यात कोडाकोडी वर्षप्रमाण आगळ कहेवामां आवशे एवा लक्षणवाळा छे. सागरवडे उपमा छे जेओने विषे ते सागरोपमो दश कोटाकोटी पल्योपम प्रमाणवाळा छे. दश कोटाकोटी (कोडाकोडी) सागरोपम
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