Book Title: Sthanang Sutram Sanuvadasya
Author(s): Sudharmaswami, Abhaydevsuri
Publisher: Abhaydevsuri

View full book text
Previous | Next

Page 329
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobabirth.org Acharya Si Kailasagarsur Gyarmandie KXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXxxxxxxxxxx तं०-एवं चेव, एवं सव्वेसिं देवाणं, पुढविकाइयाणं ततो सरीरगा पं० तं०-ओरालिते तेयए कम्मते, एवं बाउकाइयवजाणं जाव चउरिदियाणं॥ सू० २०७, गुरुं पडुच्च ततो पडिणीता पं० त०-आयरियपडिणीते उवज्झायपडिणीते थेरपडिणीते १. गात पडुच्च ततो पडिणीता पं० तं०-इहलोगपडिणीए परलोगपडिणीए दुहओ लोगपडिणीए २, समूहं पडुच्च ततो पडिणीता पं० तं०-कुलपडिणीए गणपडिणीए संघपडिणीते ३, अणुकंपं पडच्च ततो पडिणीया पं० २०-तवस्सिपडिणीए गिलाणपडिणीए सेहपडिणीए ४, भावं पडुच्च ततो पडिणीता पं० तं०-णाणपडिणीए दसणपडिणीए चरित्तपडिणीए ५, सुयं पडुच्च ततो पडिणीता पं० तं०-सुत्तपडिणीते अत्थपडिगीते तदुभयपडिणीए ६ । सू० २०८ . मूलार्थ:-नैरयिकोने त्रण शरीर कहेला छे, ते आ-वैक्रिय, तैजस अने कार्मण. असुरकुमारोने त्रण शरीर कहेला छे, ते आवैक्रिय, तेजस अने कार्मण. एची रीते सर्वे देवोनेत्रण शरीर होय छे. पृथ्वीकायिकोने त्रण शरीर कहेला छे, ते आ-औदारिक, तैजस अने कार्मण, एवी रीते वायुकायिकने छोडीने शेप यावत् चौरिद्रिय पर्यंतना जीवोने त्रण शरीर छे. (सू० २०७) गुरुने आश्रयी त्रण प्रत्यनीक (प्रतिकूल) कहेल छे, ते आ-आचार्यनो प्रत्यनीक (अवर्णवाद बोलनार), उपाध्यायनो प्रत्यनीक अने स्थविरनो प्रत्यनीक १, गतिने आश्रयीने त्रण प्रत्यनीक कहेल छे, ते आ-आलोकप्रत्यनीक-पंचाग्नि तापादिवडे शरीरने कष्ट आपनार, परलोक Kxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377