Book Title: Sthanang Sutram Sanuvadasya
Author(s): Sudharmaswami, Abhaydevsuri
Publisher: Abhaydevsuri

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Page 345
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रोते बीजामां पण जाणवुं. रस-रसनेंद्रियनो अर्थ मधुर विगेरे, सातं-सुख अथवा ऋद्धि विगेरेने विषे गौरव एटले आदर ( इच्छा ) (०२१५). हमणा चारित्रऋद्धि कही, अने चारित्रने करण (क्रिया) छे माटे तेना भेदोने कहे छे- 'तिविहे'इत्यादि० कृतिः-अनुष्ठान कर. ते धार्मिकादि स्वामीना भेदवडे त्रण प्रकारे छे, तेमां धार्मिक-साधुनुं आ धार्मिक ज छे, एम बीजामां पण जाणं. विशेष ए के अधार्मिक-असंयत ( अविरति ) अने त्रीजो देशविरति अथवा धर्ममां थयेलं अथवा धर्म छ प्रयोजन जेनुं ते धार्मिक अनुष्ठान अने तेथी विपरीत ते अधार्मिक अनुष्ठान. एवी रीते त्रीजुं पण (धार्मिक अधार्मिक) अनुष्ठान जाणवुं (सू० २१६ ) हमणां ज धार्मिककरण कहेलं ते धर्म ज छे, माटे तेना भेदोने कहे छे- 'तिविहे 'त्यादि० सुगम छे. मात्र श्रीमहावीर भगवाने कहेलुं छे एवी रीते सुधर्मास्वामी जंबूस्वामी प्रत्ये कहेता हता. सु-सारी रीते काळ अने विनयादिनी आराधनावडे अति-गुरुनी पासे सूत्रथी भणेलं ते स्वधित, तथा सु-विधिपूर्वक गुरु आगळ ज व्याख्यानद्वारा अर्थथी सांभळीने ध्यात वारंवार चिंतन करेलुं जे श्रुत ते सुध्यातं, चिंतननो अभाव छते तच्चनो बोध न थवावडे अध्ययन (भणवुं ) अने श्रवण (सांभळं ) ए ननुं प्रायः फल होतुं नथी. आ वे भेदवडे श्रुतधर्म को तथा सु-आ लोक विगेरेना सुखनी आशा सिवाय तपसित- तपनुं अनुष्ठान ते सुतपसित, आ पदथी चारित्रधर्म कह्यो. आ त्रणेना पण उत्तरोत्तर अविनाभाव (सहचाररूप कारणकार्यभाव) ने बतावे छ- 'जया' इत्यादि० सुगम छे, विशेष ए के दोष रहित अभ्यास विना श्रुतना अर्थनी प्रतीति न थवाथी सुध्यात थतुं नथी, सारी रीते चिंतनना अभावे ज्ञाननी विकलताथी सारुं तप न थाय, ए भाव छे, जे सुअधित विगेरे ऋण पद छे भगवान् श्रीवर्द्धमानस्वामीए धर्म कहेलो छे. ' से ' ति० ते धर्म सारी रीते कल छे, कारण के सम्यग्ज्ञान अने ने For Private and Personal Use Only *****************

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