Book Title: Sthanang Sutram Sanuvadasya
Author(s): Sudharmaswami, Abhaydevsuri
Publisher: Abhaydevsuri

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Page 354
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandie श्रीस्थानाङ्गसूत्र सानुवाद ॥३१॥ KAXXXXXXXXXXXXXXXXXXxxxxxxxxx लीधे ज बालमरणथी तेनुं विशेषत्व छे. ३, बालपंडित मरणने विषे तो लेश्यानुं मिश्रपणुं होवाथी ज संक्लिश्यमानपणुं अने ३ स्थानविशुद्धमानपणुं नथी, माटे आ विशेष छे. एवी रीते पंडितमरण वस्तुतः वे प्रकारे ज छे, केमके तेने संक्लिश्यमान काध्ययने ले श्यानो निषेध छते अवस्थित अने वर्धमान लेश्यत्व होय छे; त्रिविधपणुं तो कथन मात्रथी ज छे. बालपडितमरण तो एक उद्देशः ४ प्रकारे ज छे, केम के तेने संक्लिश्यमान अने पर्यवजात लेश्यानो निषध छते अवस्थित लेश्यत्व होय छे. आनुं त्रिविधपणुं शङ्कितेतरतो इतर-संवि लश्यमान अने पर्यवजात लेण्यानी व्यावृत्तिथी (न होवाथी) वणना कथननी प्रवृत्तिमात्र छ (सू० २२२). त्वाद्यहिअनंतर मरण कां अने जेबी रीते मरेलाने तो जन्मांतरमा जे त्रण वस्तु जेना वास्ते प्राप्त थाय छे ते तेना वास्ते तादिकदेखाडवा माटे कहे छ त्वाय तओ ठाणा अव्ववसितस्स अहिताते असुभाते अखमाते अणिस्सेसाते अणाणुगामियत्ताते २२३ भवंति, तं०-से णं मुंडे भवित्ता अगारातो अणगारियं पव्वतितेणिग्गंथे पावयणे संकिते कंखिते विति सूत्रम् गिच्छिते भेदसमावन्ने कलुससमावन्ने निग्गंथं पावयणं णो सद्दहति णो पत्तियति णो रोएति तं परिस्सहा अभिमुंजिय २ अभिभवंति,णो से परिस्सहे अभिमुंजिय २ अभिभवइ (१),सेणं मुंडे भवित्ता अगारातो अणगारितं पव्वतिते पंचहि महव्वएहि संकिते जाव कलुससमावन्ने पंच महत्वताई नो सद्दहति || ३२१॥ For Private and Personal Use Only

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