Book Title: Sthanang Sutram Sanuvadasya
Author(s): Sudharmaswami, Abhaydevsuri
Publisher: Abhaydevsuri

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Page 355
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Exxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx जाव णोसे परिरसहे अभिमुंजिय र अभिभवति (२),से णं मुंडे भवित्ता अगारातोअणगारियं पध्वतिते छहिं जीवनिकाएहिं जाव अभिभवइ (३),ततो ठाणा ववसियस्स हिताते जाव आणुगामितत्ताते भवंति, तं०-से णं मुंडे भवित्ता अगारातोअणगारियं पव्वतिते णिग्गंथे पावयणे णिस्संकिते णिक्कंखिते जाव नो कलससमावन्ने णिग्गंथं पावयणं सद्दहति पत्तियति रोतेति से परिस्सहे अभिमुंजिय २ अभिभवति, * नो तं परिस्सहा अभिजुंजिय २ अभिभवंति (१), से णं मुंडे भवित्ता अगारातो अणगारियं पव्व-* तिते समाणे पंचहि महत्वएहिं णिस्संकिए णिकंखिए जाव परिस्सहे अभिजुंजिय २ अभिभवइ, नो तं परिस्सहा अभिजुजिय २ अभिभवंति (२), से णं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए छहिं जीवनिकाएहि णिरसंकिते जाव परिस्सहे आभिजुजिय २ अभिभवति. नो तं परिस्सहा अभिजुंजिय २ अभिभवंति ३ । सू० २२३ मूलार्थः-त्रण स्थानक, जेणे निश्चय नथी कर्यो तेने ए त्रण स्थानक, अहितने माटे, अशुभ-दुःखने माटे, अयथार्थपणाने माटे, अनिश्रेयस-अकल्याणने माटे के अमोक्षने माटे, अने अशुभ कर्मना अनुबंधने माटे थाय छे, ते आ प्रमाणे-जे द्रव्य, भावथी मुंड थईने, घरथी नीकळी अणगारपणाने प्राप्त थयेल एवो साधु निग्रंथ प्रवचनमा शंकावाटो, कांक्षावाळो, विति XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX) For Private and Personal Use Only

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