Book Title: Sthanang Sutram Sanuvadasya
Author(s): Sudharmaswami, Abhaydevsuri
Publisher: Abhaydevsuri
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श्रीस्थानाङ्गसूत्र सानुवाद ।। ३२६॥
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. क्षीणमोह गुणस्थानना छेल्ला समये पांच प्रकारचें ज्ञानावरणीय, चार प्रकारचें दर्शनावरणीय अने पांच प्रकारचें अंतरायकम-आ चौद प्रकृतिओ (युगपत्) खपापीने केवळी थाय छ शेष सुगम छे. (मू० २२६) अनंतर-अशाश्वतार्नु त्रिस्थान कह्यु, हवे शाश्वतार्नु त्रिस्थानक कहे छे. 'अभी' त्यादि० सात सूत्रो सुगम छे. (सू० २२७) परंपर (अंतरसहित) सूत्रमा क्षीणमोहर्नु त्रण संख्याविशिष्ट स्थानक कधु, हवे क्षीणमोहविशिष्ट तीर्थंकरोने ते कहे छे-'धम्म' त्यादि० प्रकरण 'तिचउन्भाग' त्ति. एक पल्योपमना चार भाग पैकी त्रण भागवडे न्यून कयु छ के-“धम्मजिणाओ संती, तिहि उ तिचउभागपलियऊणेहिं अयरेहिं समुप्पन्नो" त्ति० श्री धर्मनाथ जिनथी श्री शांतिजिन पोगो पल्योपम न्यून त्रण सागरोपम काळवडे मोक्ष गया (सू० २२८) 'समणस्से त्यादि० युग-पांच वर्ष प्रमाण काळविशेष, अथवा लोकमां प्रसिद्ध जे कृतयुग विगरे छ ते युगो क्रमथी व्यवस्थित छे, तेथी पुरुषो-गुरुशिष्यना क्रमवाळा अथवा पितापुत्रना क्रमवाळा, युगोनी जेम पुरुषो ते पुरुषयुगो, पुरुषसिंह शब्दनी जेम समास छे तेथी पंचमी विभक्तिनो बीजी विभक्तिमा अर्थ छे. त्रीजा पुरुषयुग पर्यंत अर्थात् जंबूस्वामी सुधी. 'जुग' त्ति० पुरुषयुग, तेनी अपेक्षाए अंतकरो-भवना अंतने कर नारानी अर्थात् मोक्षगामीओनी भूमि-काळ, ते युगांतकरभूमि. कहेवार्नु तात्पर्य एके भगवान् महावीरस्वामीना तीर्थमां तेनाथी ज आरंभीने त्रीजा पुरुष जंबूस्वामी पर्यंत मोक्षमार्ग हतो, त्यारबाद तेनो विच्छेद थयो. 'मल्ली' त्यादि० चे सूत्रनु कथ न-" एगो भगवं वीरो, पासो मल्ली य तिहिं तिहिं सरहिं" ति० श्री महावीर प्रभु एकाकी अने पार्श्वनाथ तथा मल्लिनाथ त्रणशें त्रणशें पुरुषो साथे (दीक्षा लीधी). मल्लिनाथे त्रणशें स्त्रीओ साथे दीक्षा लीधी छे. (सू० २२९) 'समणे त्या दि. 'अजिणाण ति० असर्वज्ञपणाए
३ स्थानकाध्ययने उद्देशः ४
त्रीणि प्रकाराणि २२६
२३१ सूत्राणि
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॥३२६॥
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