Book Title: Sthanang Sutram Sanuvadasya
Author(s): Sudharmaswami, Abhaydevsuri
Publisher: Abhaydevsuri
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मात्र, उपचयन-कर्मना अबाधाकालने छोडीने भोगववा माटे निषेक-कर्मदलिकनी रचना करवी ते, बंधन-निकाचन करवू ते, उदीरण-उदयमां नहिं आवेला कमोंने जीवना वर्यिविशेषवडे खेंचीने उदयमा लाववा ते, वेदन एटले भोगवq ते, निर्जरणजीवना प्रदेशोथी कर्मना पुद्गलोने दूर करवा ते (सू० २३३) आ चयनादि छ पदो भूत, वर्तमान अने भविष्यकाल आश्रयी जाणवा. त्रण प्रदेशिक स्कंधो अनंता कहेला छे एवी रीत यावत् त्रण गुणवाळा रुक्ष पुद्गलो अनंता कहेला छे (मू० २३४)
टीकार्थः-'तओ' इत्यादि० लोकरूप पुरुषना ग्रीवा( कंठ )स्थानमा जे थयेला ( रहेला) ते ग्रेवेयको, एवा विमानो ते अवयक विमानो, तेना प्रस्तटो-पाथडा, ते रचनाविशेषवाळा समूहो. (सू० २३२) आ ग्रैवेयकादि विमानोनो बसबाट कर्मसंबंधथी थाय छे, माटे कर्मना त्रण स्थानकने कहे छे:-'जीवाण' मित्यादि० छ सूत्रो-तेमां त्रण स्थानकवडे एटले स्त्रीवेदादिवडे उपार्जन करेल पुद्गलोने पापकर्म-अशुभ कर्मपणाए उत्तरोत्तर-आगळ आगळ अशुभ अध्यवसायथी एकठा करेला, एवी रीते परिपोषण करवाथी ज विशेष संचय करेला, निकाचित करवाथी दृढ़ बांधेला, अध्यवसायना वशवडे उदयमां नहि आबेल कोने उदयमा प्रवेश करवाथी उदीरणा करेला, अनुभव करवाथी वेदेला, जीवना प्रदेशोथकी परिशाटन-कर्मपुद्गलोने दूर करवाथी निर्जरा करेला. अत्र संग्रहणी अर्द्धगाथा छ-' एवं चिण'' एव' मिति० जेम एक चयन त्रण कालना अभिलापवडे कयुं तेम बधाय पदो कहेवा (सू० २३३ ) कर्म पुद्गलात्मक छे माटे पुद्गलस्कंधो प्रत्ये त्रिस्थानकने | कहे छे-'तिपएसिए' त्यादि० स्पष्ट छे. बधा सूत्रोमां जेनुं व्याख्यान करेल नथी ते सुगम छे. (सू० २३४)
॥त्रीजा स्थानकना चोथा उद्देशानी टीकानो अनुवाद समाप्त ॥
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