Book Title: Sthanang Sutram Sanuvadasya
Author(s): Sudharmaswami, Abhaydevsuri
Publisher: Abhaydevsuri
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श्रीस्थानाङ्गसूत्र
सानुवाद ।। ३२४ ।।
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उत्पाद - उत्पत्ति होवाथी वे वांक थाय छे अने तेमां त्रण समयो थाय छे. ते आ प्रमाणे- अग्निकोण ( खूणा थी नैऋतकोणमा एक समयवडे जाय छे, ते पछी बीजा समयवडे समश्रेणीए नीचे जाय छे, त्यारबाद त्रीजा समये समश्रेणीए ज वायव्यकोणमां जाय छे. त्रसकायनी उत्पत्तिमां त्रसोने ज आ प्रकारे उत्कृष्टथी विग्रह - वक्रगति छे. आ कारणथी कहे छे के - ' एगेंदिये ' त्यादि० एकेंद्रियो तो एकेंद्रियोंने विषे पांच समयवडे पण उत्पन्न थाय छे, कारण के त्रसनाडीथी बहार रहेला तेओ सनाडीथी बहार पण उत्पन्न थाय छे. ते आ प्रमाणे
विसाउ दिसं पढमे, बीए पइसरइ लोयनाडीए । तइए उपि धावइ, चउत्थए नीइ बाहिं तु ॥ २२७॥
'पंचमए विदिसीए गंतुं उप्पज्जए उ एगिद्दि ' प्रथम समये विदिशाथी दिशामां जाय छे, बीजे समये त्रसना - डीमां आवे छे, बीजे समये ऊंच जाय छे, चोथे समये त्रसनाडीथी बहारनी दिशामां समश्रेणीए जाय छे अने पांचमे समये विदिशामां जईने एकेंद्रियपणाए उत्पन्न थाय छे. आ संभव मात्र छे, परंतु होय छे तो चार समय ज. श्री भगवतीसूत्रमां ते प्रमाणे कहेल होवाथी जणावे छे-“ अपज्जन्तगसुहुमपुढविकाइए णं भंते ! अहेलोग खेत्तनालीए बाहिरिल्ले खेत्ते स मोहर समोहणित्ता जे भविए उड्डलोयखेत्तनालीए बाहिरिल्ले खेत्ते अपज्जत्तसुहुमपुढविकाइयत्ताए उववजित्तए से णं भंते ! कतिसमइ एणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा ? गो० ! तिसमइएण वा चउसमइएण वा विग्गहेण उववज्जेज्जा " इत्यादि० प्र०-हे भगवन् ! अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव, अधोलोकनी क्षेत्रनाडीथी बदारना
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३ स्थानकाध्ययनं
उद्देशः ४ घनोदध्या
दिवलयानि विग्रहो
त्पाद: २२४२२५
॥ ३२४ ॥

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