Book Title: Sthanang Sutram Sanuvadasya
Author(s): Sudharmaswami, Abhaydevsuri
Publisher: Abhaydevsuri

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Page 359
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra वेलयानां विखुभ- विस्तारने हुं कहीश. www.kobatirth.org छच्चैव १ अद्धपंचम २, जोयण सद्धं च ३ होइ रयणाए । उदही १ घण २ तवाया ३, जाहासंखेण निद्दिट्ठा ॥ २२५ ॥ रत्नप्रभा पृथ्वीमां घनोदधिनो वलय छ योजन, घनवायुनो वलय साडाचार योजन अने तनुवासनो वलय दोड योजन प्रमाण होय छे. तिभाग १ ( योजनस्य ) गाउयं चैव २, तिभागो गाउयस्त य ३ । आइधुवे पक्खेवो, अहो अहो जाव सत्तमिअं ॥ २२६ ॥ उपर्युक्त त्रण वलयांना प्रमाणमां बीजी नारकीओने माटे आ प्रमाणे वधारो करवो. घनोदधिना वलयमां योजननो श्रीजो भाग, धनवातना वलय मां एक गाउ अने तनुवासना वलयमा गाउनो त्रीजो भाग अर्थात योजननो बारमो भाग उमेखो एटले शर्कराप्रभा पृथ्वीमां घनोद धिनो वलय छ योजन अने योजननो श्रीजो भाग अधिक, घनवातनी वलय पोणापांच योजन अने तनुवातना वलय एक योजन अने एक योजना बार भाग करीए तेवा सात भाग १-१ छे. ए प्रमाणे दरेक पृथ्वीमां उमेरो करवो. आ सात पृथ्वीओने विषे नारको ज उत्पन्न थाय छे माटे तेनी उत्पत्तिनी विधिने कहेवा माटे सूत्रकार कहे छे:- 'नेरइया ण' मित्यादि० त्रण समयो ते त्रिसमय ते छे जेमां ते त्रिसमयिक, ते विग्रह वक्रगमनवडे, 'उक्कोसेणं' ति० त्रसोनो चोकस नामां For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir

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