Book Title: Sthanang Sutram Sanuvadasya
Author(s): Sudharmaswami, Abhaydevsuri
Publisher: Abhaydevsuri

View full book text
Previous | Next

Page 352
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीस्था नाङ्गसूत्र सानुवाद ॥ ३२० www.kobatirth.org जह सुरभिकुसुमगंधो, गंधो वासाण पिस्समाणाणं । एतोवि अगंतगुणो, पसत्थलेसान तिप हंपि ॥ २२३ ॥ जेम सुगंधी जाई विगेरे फूलोनो अने चूर्ग करेल चंदनादि वास द्रव्योनो जे गंध छे तेनाथी अनंतगुण गंधू प्रशस्त तेजोलेश्यादि त्रणनो होप छे. तेजः- अग्नि, तेना जेवी वर्णवाळी (लाल रंगवाळी) ते तेजोलेश्या. पद्मकमलना गर्भ-मध्य भागना जेवा वर्गवाळीपीळा वर्णवाळी ते पद्मलेश्या. शुक्ल लेश्या घोळा वर्णशळी छे. २, 'एवं' आ शब्दयी प्रथम सूत्रनी माफक 'तओ' इत्यादि० अभिलापवडे बाकीना सूत्रो कहेवा योग्य छे. तेमां दुर्गति एटले नरक अने तिर्यंचरूप दुर्गति प्रत्ये प्राणीने लई जाय छे ते दुर्गाीतगामिनी लेश्याओ ३, सुगति-देव अने मनुष्यरूप ४, दुःख अध्यवसाय अथवा दुःखना कारणभूत होवाथी संक्लिष्ट ऋण लेश्याओ छे. ५, विरुद्ध पक्ष सुगम छे अर्थात् त्रण लेश्या असंक्लिष्ट छे. ६, मनने न गमता रसयुक्त पुद्गलमय ( लेश्या ) होवाथी त्रण अमनोज्ञ छे. ७, त्रण मनोज्ञ छे. ८, अविशुद्ध-वर्णथी त्रण लेश्या मलिन छे. ९, त्रण लेश्या विशुद्ध छे. १०, अप्रशस्त -त्रण लेश्या अकल्याणरूप छे अर्थात् स्वीकारवा योग्य नथी. ११, त्रण लेश्या प्रशस्त छे. १२, पहेली त्रण लेश्या स्पर्शथी शीत अने रुक्ष छे. १३, पाछली त्रण लेश्या स्पर्शथी स्निग्ध अने उष्ण छे. १४. ( सू० २२१ ) हमणा लेश्याओ कही, हवे लेश्याविशिष्ट मरणनुं निरूपण करवा माटे कहे छे:-' तिविहे 'त्यादि० - बाल - अजाणती माफक जे व छे अर्थात् विरतिनो साधक जे विवेक तेनाथी रहित होवाथी बाल-असंयत कहेवाय, तेनुं मरण ते बालमरण. एवी रीते बीजा वे मरण पण जाणवा. 'पडि' धातु गति अर्थपणाए ज्ञानना अर्थमां होवाथी निरतिरूप फलवडे फलनी माफक विज्ञानसंयुक्त होवाथी पंडित-तवनो जाण अर्थात् संयत, अविरतपणाए बालपणुं होवाथी अने [ कांईक ] For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ***** ३ स्थान काध्ययने उद्देशः ४ लेश्यामर वर्णनम् २२१ २२२ सूत्रे ॥ ३२० ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377