Book Title: Sthanang Sutram Sanuvadasya
Author(s): Sudharmaswami, Abhaydevsuri
Publisher: Abhaydevsuri

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Page 351
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx कहेल छे, ते आ प्रमाणे-जे मरणमां कृष्णादि लेश्या अविशुद्धपणाथी अवस्थित ( कायम ) छ ते स्थितलेश्य मरण, जे मरणमा संक्लिश्यमान महाकलुषभावथी लेझ्या आवे छे ते संक्लिष्टलेश्य मरण अने जे मरणमा लेश्याना पर्यायोनी विशुद्धि थाय छे ते पर्यवजातलेश्य मरण २, पंडितमरण त्रणे प्रकारे कहेल छे, ते आप्रमाणे-स्थितलेश्य एटले शुक्ललेश्यामां मरण पामी शुक्ललेश्यावाळादेवमा ज उपजे ते, असंक्लिष्टलेश्य मरण-जे मरणमा संक्लिष्ट लेश्या नथी ते अने पर्यवजातलेश्य मरण-बर्द्धमान लेश्यावडे मरण पामीने उपजे ते ३, बालपंडित मरण त्रण प्रकारे कहेल छ, ते आ प्रमाणे-स्थितले श्य मरण-जे विशुद्ध लेश्याए मरे ते ज लेल्यावाळा देवमां उपजे, असंविलालेदय मरण-ते श्रावकना संक्लिष्ट मरणमा लेश्या न होबाथी अने अपर्यवजातलेश्य मरण-ते श्रावकना मरणमां वर्द्धमान लेश्या न होबाथी ४. (मू० २२२) टीकार्थ:-'तओ'इत्यादि० सुगम छे. विशेष ए के-'दुभिगंधाओ ति० खराब गंधी ते दुर्गधो. लेश्याओ पुद्गलात्मक होवाथी तेओर्नु दुगंधपणुं छे अने पुद्गलोने गंधादिनो अवश्य भाव होय छे. कधु छे केःजह गोमडस्स गंधो, सुणगमडस्स व जहा आहिमडरस। एसोवि अणंतगुणो लेसाणं अप्पसत्थाणं।२२२॥ जेम गायना मृतकनो दुगंध, श्वानना मृतकनी दुर्गध अने सर्पना मृतकनो दुर्गंध छे, तेनाथी पण अनंतगुण दुर्गध अप्रशस्त कृष्णादि प्रण लेश्यानो होय छे. आ लेश्याओनो वर्ण(रंग) नाम प्रमाणे छे. कपोतवर्णवाळी लेश्या ते कापोत लेश्या, धूवाडाना वर्ण जेवी एवो अर्थ छे. १, 'सुम्भिगंधा'त्ति० सुरभिगंधो. कां छे के: kxxxxxxxxxxxxxXXXXXxxxxxxxxxxxxxx For Private and Personal Use Only

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