Book Title: Sthanang Sutram Sanuvadasya
Author(s): Sudharmaswami, Abhaydevsuri
Publisher: Abhaydevsuri

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Page 343
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org विगेरे [स्वरूपवाळी] सचेतन वस्तुनी संपत्ति, अचेतना - वस्त्र अने आभूषण विगेरे स्वरूपवाळी अने मिश्रा - अलंकृत थयेल देवी विगेरे स्वरूपवाळी संपत्ति ३, अतियान- नगरमां प्रवेश, तेमां ऋद्धि-तोरण, हाटनी शोभा, मनुष्योनी भीड (समुदाय) विगेरे स्वरूपवाळी, निर्यान- शहरमांथी नीकळवं, तेमां ऋद्धि- हाथीनी अंबाडी अने सामंतपरिवार विगेरे स्वरूपवाळी, बल - चतुरंग सेना, वाहनो - घोडा विगेरे, कोश- भंडार, कोष्ठ-धान्यना भंडार, तेओना घर ते कोष्टागार अर्थात् धान्यनुं घर, तेओनी ऋद्धि अथवा ते जऋद्धि ते बल, वाहन, कोश, कोष्ठागार ऋद्धि. ४, सचित्तादि ऋद्धिपूर्वनी माफक विचारवी - समजवी ५, ज्ञानऋद्धिविशिष्ट श्रुतनी संपत्ति, दर्शन ऋद्धि-जिनवचनमां निःशंकितादिपणुं अथवा शासनने दीपावनार शास्त्रोनी संपत्ति (तर्कशास्त्रनुं ज्ञान ), चारित्रऋद्धि-निरतिचारपणुं. ६, सचिता- शिष्यादि स्वरूपवाळी, अचित्ता - वस्त्रादि विषयवाळी, मिश्रा-तेवी ज रीते वस्त्रादि सहित शिष्य स्वरूपवाळी. ७. प्रस्तुत विकुर्वणा विगेरे ऋद्धिओ बीजाओने पण होय छे; मात्र देवो विगेरेने विशेष स्वरूपवळी होय छे माटे तेओने ज कहेली छे. ऋद्धिनो सद्भाव छते गौरव-अभिमान थाय छे, आ हेतुथी तेना भेदोने कहे छे ततो गारवा पं० तं०-इड्डीगारवे रसगारवे सातागारवे । सू० २१५, तिविधे करणे पं० - धम्मिते करणे अधम्मिए करणे धम्मिताधम्मिए करणे । सू० २१६, तिविहे भगवता धम्ने पं० तं०- सुअधिज्झिते सुज्झातिते सुतवस्सिते, जया सुअधिज्झितं भवति तदा सुज्झातियं भवति जया सुज्झातियं भवति तदा सुतवस्सियं भवति, से सुअधिज्झिते सुज्झातिते सुतवस्सिते For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir **************************** **********

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